An outsider soule within a mouse

मेरी, तेरी, उसकी बातें: चूहे के अन्दर घुसी आत्मा ('चूहे' भाग-8)

अनुमान कीजिए आप चार कमरे के आवास में नितान्त अकेले हों! दिन भर की भागम-भाग वाली जिंदगी में थक कर चूर हो गहरी नींद में सो रही हों, रात का समय डेढ़-दो के बीच का समय हो, घड़ी की सुई टिक-टिक, टिक -टिक, टिक - टिक कर रही हो, अमावस की रात घने अंधेरे में बिजली भी गुल हो, बाहर आंधी-बरसात का मौसम हो, अचानक आपको महसूस हो कि सर पर, बदन पर, पाँव के पास कुछ ठण्डी, मुलायम सी कोई चीज आपको बार बार छूते हुए भाग रहा हो जिसके कारण चौंकते हुए आपकी नींद टूट जाए, तो कैसा लगेगा ? कुछ ऐसा ही मेरे साथ हुआ था जब मैंने किसी भयावह फिल्म की डरावनी रात की तरह जाग कर बन्द कमरे में मच्छर दानी के अंदर टोर्च की रोशनी से इधर-उधर देखते हुए, हनुमान चालीसा पढ़ते हुए गुजारी थी।

बात आज से लगभग सात साल पहले की है। उस समय मैं कॉलेज में परीक्षा प्रभारी थी। कॉलेज में परीक्षा चल रही थी अतः' छुट्टियाँ चाहिए' कहना भी अपराध बोध का भाव ही जाग्रत करता था। सुबह घर के काम निपटा कर कॉलेज जाना वहाँ के सारे काम निपटा कर, सघन यातायात के बीच ड्राइव कर घर पहुँचते शाम हो जाती थी। रात के भोजन के साथ-साथ आने वाले सुबह के लिए भी कुछ कार्यों का निपटान आवश्यक होता था। इतनी आपाधापी के बीच कुछ अप्रत्याशित कार्यों, मेहमानों, बच्चों के दोस्तों का आगमन या घर के कार्य के लिए रखी गयी सहायिका का अचानक बिना बताये छुट्टी पर चले जाना सामान्य सी घटना होने के बावजूद अंदरूनी चिड़चिड़ापन पैदा करता था। पारिवारिक सदस्यों के न्यूनतम सहयोग के आधार पर घर-बाहर काम करने वाली औरतों की जीवन शैली को सिर्फ मेरे ही ऐसी घर - बाहर की जिम्मेदारियों के बीच पिसती मध्यमवर्गीय औरतें ही महसूस कर सकती हैं।

इसी समयांतराल में जब मैं कॉलेज के परीक्षा के कार्यों में व्यस्त थी गाँव से फोन कॉल आया कि मेरे पति के बड़े भाई अचानक लकवा से ग्रस्त हो हॉस्पिटल में भर्ती हैं। अपने निवास स्थान से गाँव तक की यात्रा ट्रेन से भी लगभग तीन दिन की होती है तिस पर रिजर्वेशन का भी मिलना कठिन होता हैं। अभी हम जाने के इंतजाम में संलग्न ही हुए थे कि दूसरे दिन ही खबर आयी कि जेठजी ने दुनियाँ को राम-राम कह स्वर्ग की राह पकड़ ली है। बड़ी मुश्किल से एक बर्थ मिली थी मेरे पति को जाना अति आवश्यक था अतः वे गॉंव के लिए प्रस्थान कर गए। बच्चे भी अपने-अपने ऑफिस के कार्य के कारण कुछ दिनों के लिए देश से बाहर गए थे इसलिए लम्बे समय के बाद घर में मैं नितांत अकेली ही थी।

माहौल यूँ ही भारी-भारी सा था। इनके जाने के बाद वापस कॉलेज गयी काम में दिन बीत गया था। थकान एवं तनाव के बीच घर के भी काम निपटाए क्यों कि किसी के मृत्यु के पश्चात समूचे घर के हर कोने की खिड़की, दरवाजों, पर्दों, सभी प्रावरण आदि की, रसोई की, फ्रीज की, लगभग प्रत्येक वस्तु की विशेष प्रकार से सफाई होती है। देखते-देखते रात के बारह हो रहे थे अतः कुछ कार्य दूसरे दिन पर टाल कर सो गयी। ऐसे तो मार्च के अंत में प्रायः बारिश नहीं होती थी परन्तु उस रात आंधी के साथ बारिश भी आ गयी थी। ऐसे भी बंगलौर की बारिश केरल, तमिलनाडु, आंध्रा के मौसमी मिजाज के साथ दोस्ताना रवैया अपनाती है। इन राज्यों में कहीं भी तूफान या बारिश हो बंगलुरु प्रभावित अवश्य होता है। अचानक ट्रांस्फॉर्मर के फटने की भड़ाम की आवाज के साथ बिजली गायब हो चुकी थी। सुबह से पहले जिसके आने की भी कोई संभावना नहीं थी इसलिए सारे दरवाजे बंद कर, ट्रॉर्च सिरहाने में रख कर सो गयी थी।

थकने के बाद ऐसे भी नींद अच्छी आती है फिर बिजली के कड़कने के साथ घनी बारिश भी हो तो कहना ही क्या? थोड़ी ही देर में गहरी नींद में गोते लगा रही थी। हल्की सी ठंढ बारिश की आवाज के कारण सपने में झरने में स्नान भी कर रही थी। अचानक किसी ठण्ढी मुलायम सी चीज के हथेली पर, पॉंव पर, छाती पर चलने के अनुभव से चौंकते हुए नींद टूटी और मैं उठ बैठी, अजीब सा डर अपने आप छा गया था। ट्रॉर्च की रोशनी चारों ओर डालने पर भी मुझे कुछ नहीं दिखाई दिया था परन्तु घर में कुछ है; मेरी नींद किसी स्पर्श से टूटी है; ये तो पक्का था। थोड़ी देर लेट कर सोचती रही ये स्पर्श सच था या सपना लेकिन दूसरे पल हिम्मत कर उठी, सारे कमरे खिड़की दरवाजे की साँकल छिटकनी ठीक से जाँच परख कर, अपने बैडरूम का दरवाजा जो प्रायः खुला रहता था उसे भी बंद कर सो गयी। अभी ठीक से सो भी नहीं पायी थी कि मेरे ऊपर कुछ कूदा, दौड़ते हुए सिरहाने के पास बार-बार दायें - बाँयें भागने से मच्छर दानी के अंदर काफी हलचल मची थी; डर के मारे मेरे मुँह से चीख निकल गयी थी जिसे सुनने के लिए घर में कोई मौजूद नहीं था। टॉर्च लेकर मैं मच्छरदानी से बहार आ गयी। टॉर्च उल्टा कर जमीन पर रखा ताकि छत के परावर्तन से कमरे में रोशनी थोड़ी ज्यादा हो। मच्छरदानी निकाल कर जमीन पर पटक-पटक कर झाड़ा। उसी तरीके से ओढ़ने - बिछाने का चादर भी झाड़ कर पुनः मच्छरदानी लगा कर, चारों कोण निचले परिधि को भी बिस्तर के नीचे दबा कर, पानी का बोतल भी मच्छरदानी के अन्दर ले कर पुनः सोने की कोशिश करने लगी।

थोड़ी देर तो शांति बनी रही लेकिन इसके बाद फिर से मच्छर दानी के ऊपर कुछ चल रहा है ऐसा महसूस हुआ, जल्दी से टॉर्च की रोशनी छत की ओर डालते ही देखा कि एक मोटा सा चूहा मच्छर दानी के ऊपर बैठ कर मेरी और ही देख रहा था शायद टॉर्च की तेज रोशनी में उसकी आँखें चौंधिया गयी थी इसलिए वहीं जम कर बैठ गया था। मुझसे रहा नहीं गया उसे टॉर्च से ही दे मारा या यूँ कहें कि "मरता क्या न करता' मेरे हाथ से अचानक ही टॉर्च ऊपर की ओर फैंकने के अंदाज में छूट गया था। जो भी हो उस रात मेरी नींद गायब हो चुकी थी क्योंकि चूहा बेडरूम में उधम मचा रहा था। बड़ी हिम्मत कर मच्छरदानी से बाहर निकल कर मैने बेडरूम का दरवाजा खोल कर उसे खुला ही छोड़ दिया ताकि वह बाहर भी जा सके। थोड़ी देर के बाद शांति छा गई थी। आँखों से नींद तो उड़ ही चुकी थी इसलिए मोबाइल में भजन लगा कर सुनने लगी। जाने कब आँख लग गई थी कि काम वाली के द्वारा दिए गए तीन - चार लम्बी घंटी के बाद ही जागी थी। काम वाली काफी देर तक मेरा चेहरा देखती रही थी, उसी ने चाय बना कर मुझे पिलाया, पूछा भी आप ठीक तो हैं?

रात का किस्सा उसे बताया कि किस तरह चूहे ने रात में परेशान किया था तो वह बोलने लगी - मैडम जब किसी मृतक की आत्मा चूहे में घुस जाती है तो वह अपने ही घर के लोगों को इसी तरह बार - बार परेशान करता है । आपके रिश्ते में मृत्यु हुई है तो उसकी आत्मा चूहे के अंदर समा कर आपको परेशान कर रही है। आप किसी गरीब को या मंदिर में कुछ दान - दक्षिणा दे दीजिए। मैं भी सोचने लगी एक तो चूहा कौन सा कम डरावना था जो इसके अंदर मृतक की आत्मा या भूत भी घुस गया है आखिर करूं तो क्या करूं? कामवाली सहायिका से कहा "मैं कहां किसको ढूंढने जाऊं तू ही ले ले पैसे और सारे कोने आलमारी वगैरह के पीछे झाड़ू ठीक से ठक - ठक करके झाड़ू लगा,चूहे को घर से निकाल" । उसने समूचे घर के कोने - कोने में सफाई की; चूहा तो नहीं मिला हां उसके द्वारा कुतरे गए बिस्किट,मैगी,आलू वगैरह जरूर मिले जिसे कामवाली या सहायिका ने साफ कर दिया था। उस दिन कॉलेज जाते हुए रास्ते में रुक कर मन्दिर की हुंडी में कुछ पैसे डाल, उस अज्ञात आत्मा की शांति के लिए भगवान को प्रणाम कर आई थी।

पता नहीं चूहे के अंदर घुसी आत्मा के संदर्भ की बातें सच है या झूठ लेकिन इसके बाद लगभग कई दिन अकेले गुजारा था एवं सौभाग्य वश चूहा घर के अंदर नहीं आया था।

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