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विभाजन विभीषिका (भाग-3): एक और विभाजन ? कभी नहीं

अखंड भारत

भारत शताब्दियों से विभाजन झेल रहा है और यह विभीषिका अनवरत चल रहा है। भारतवर्ष एक बड़ा भू-भाग था जो वैदिक सभ्यता का अनुकरण करता था।कुछ प्राचीन इतिहासकारों के अनुसार भरतखण्ड पूर्व में इंडोनेशिया से लेकर पश्चिम में गांधार और उत्तर में तिब्बत तक का क्षेत्र था। यह तो सत्य है कि हमारे पूर्वज भरतखण्ड को अखंड नहीं रख सके।आपसी कलह और फूट से कुछ भूभाग तत्कालीन शासकों द्वारा विच्छिन्न कर लिए गए थे।अनेकों सहस्राब्दी की वैदिक सभ्यता में अवश्य ही कुछ विकृति आई होगी कि570 BCE में पहले महावीर जैन ने एक अलग ‘जैन धर्म’ की स्थापना की और इसके कुछ दशकों बाद ही 523 BCE में ‘बौद्ध धर्म’ की स्थापना भी की गयी।इन विसंगति जैसी परिस्थितियों में यह ठीक-ठीक पता नहीं कि कौन सा भू भाग कब अलग हुआ। ईसा पूर्व शताब्दियों में महाजनपद, मगध, नन्द तथा मौर्य साम्राज्य आदि के इतिहास थे जिनमें से बहुतेरे दस्तावेजों को को मुग़ल काल में क्षत-विक्षत कर दिया गया था और कुछ बचे-खुचे इतिहास और साहित्य अंग्रेजों द्वारा चुरा लिए गए ।

विभाजन की चुनौतियाँ

हाँ ! पिछले डेढ़ हजार सालों में यह तो निश्चित ही है कि भारत में इस्लाम रूपी कैंसर जहाँ-जहाँ फैला, वे भाग कट कर अलग होते गए; वे चाहे गांधार हो, पंजाब या फिर बंगाल। इस्लाम द्वारा थोपे विभाजन की विभीषिका अभी भी मानस पटल पर ताजा है और आज भी चुनौती-पूर्ण है, चुनौती बना हुआ है (read “विभाजन विभीषिका (भाग-1) और भारतीय धर्म”, https://thecounterviews.com/articles/indian-partition-and-indian-religions/) ।

हमारे ही कुछ मुसलमान पाकिस्तानी आतंकियों के समर्थन में खड़े होते हैं और अफगान तालीबानी प्रताड़ना के हिमाकती भी हैं जिन्होंने वहाँ सिखों का सफाया कर दिया। विड़ंबना देखिए, हमारे ही राष्ट्रीय विपक्षी दलों के कुछ राजनेता 'भारत के टुकड़े टुकड़े' चाहनें वाले गैंग के साथ मिले होते हैं। मुसलमानों के लिए पाकिस्तान बनाने के बावजूद नेहरू और कांग्रेस ने AIMPB, धर्म निर्पेक्क्ष संविधान, अपार वक़्फ़ संपत्ति, जनसंख्याँ क़ानून से मुसलमानों को छूट, मुस्लिम धर्मस्थल क़ानून,हिन्दू हितों और धर्म की उपेक्षा कर, धार्मिक जनसांख्यिकी की रक्षा न कर हिन्दुओं को अपने ही देश में अल्पसंख्यक बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ा। इन्हीं सब कारणों से हिन्दू आक्रोश बढ़ा है।

इस्लाम एक आक्रामक विचारधारा है जो सनातन संस्कृति के शांतिपूर्ण रास्ते से बिलकुल विपरीत है।‘सनातन’ आम तौर पर सबों के प्रति सदाचार सिखाता है तो दूसरी तरफ इस्लाम हिन्दुओं के प्रति ‘दुराचार’; हालाँकि इसमें कुछ अपवाद भी हैं। इस्लाम मंदिरों एवं उनमें प्रतिष्ठित मूर्तियों को तहस-नहस करना सिखाता है जो हम हिन्दू पिछले कई सदियों से भारत एवं पड़ोस के देशों में झेल रहे हैं ।इस्लाम विचारधारा अपने विस्तार के लिए कट्टरवाद, आतंक व हिंसा तक फैलाता है तथा पूरे विश्व में चल रहे हिंसाओं में से अधिकाँश के लिए जिम्मेदार है (read “New ‘Islamo-Fascism’ in the World”, https://thecounterviews.com/articles/islamo-fascism-paris-jihadi-attack-macron-pakistan-turkey-malaysia-mahathir-muslims-islam-radical/) ।विश्व ‘इस्लामी हिंसा’ से त्रस्त है और इन हिंसाओं की उपज इनके ‘कुरान’ से होती है (read “Is Quran a Source of Hate & Intolerance ?”, https://thecounterviews.com/articles/is-quran-a-source-of-hate-and-intolerance/) ।आज पूरा विश्व समझ रहा है कि इस्लाम अन्य धर्मों के साथ बेमेल, सदा आक्रामक रहेगा।भारत में अन्य सारे गैर-इस्लामी देशों के वनिस्पत सबसे ज्यादा मुसलमान रहते हैं और गत दो विभाजनों के पश्चात भी यह कैंसर की बीमारी भारत को तीसरे विभाजन की कगार पर ला दिया है (read “भारत में बढ़ती मुस्लिम आवादी: एक खतरा”, https://thecounterviews.com/articles/increasing-indian-muslim-population-a-danger/) ।भारत के १९४७ के विभाजन के उपरान्त भी इस्लामी कैंसर को बढ़ावा देने के लिए कांग्रेस मुख्य रूप से जिम्मेवार है (read “India Diseased by Three Cancers...Communalism, Congress and Communism”, https://thecounterviews.com/articles/india-diseased-by-three-cancers-the-communalism-congress-and-communism/) । अब सरकार की भरपूर कोशिश है कि इन विभीषिकाओं से सीख ली जाए, कि आगे के कालखंड में भारत का और विभाजन न हो।अन्यथा आने वाली पीढ़ियां हमें कतई क्षमा नहीं करेंगी।

विभाजान की विभीषिकाएँ

१४ अगस्त १९४५ का दिन हर भारतीयों का लिए एक ऐसा दिन है जब भारत का असहनीय विभाजन तो हुआ ही था लेकिन उसी दिन से एक लम्बे अंतराल के लिए एक ऐसे कालखंड की शुरुआत हुई जिसका अभी तक अंत नहीं हो पाया है।यह विभीषिका ने लगभग १५ लाख लोगों की जिंदगी को उसी समय निगल लिया था लेकिन ‘क्षद्म धर्मनिर्पेक्षी’ इस बात को स्वीकार करने से कतराते हैं कि इसी विभाजन के बाद पाकिस्तान में रह रहे हिन्दुओं, सिखों एवं ईसाइयों के नरसंहार का भी शुरुआत हुआ। विभाजन के समय पाकिस्तान वाले भूखंड में गैर-मुस्लिम की आवादी लगभग 21% थी जो विभाजन पश्चात ‘धार्मिक पहचान’ पर चल रहे नरसंहार के चलते सिमट कर 2% से कम रह गयी है। इस पर अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर भारत की आवाज ज्यादा सशक्त व प्रखर नहीं है जैसा कि यहाँ किसी मुसलमान के मानवाधिकार हनन को लेकर पूरी की पूरी इस्लामी देश हाय-तौबा मचा देते हैं। संयुक्त राष्ट्र, मानवाधिकार आयोग तथा विश्व समुदाय ने तो अफगानिस्तान, पाकिस्तान, बांग्लादेश में चल रहे हिन्दुओं के नरसंहार पर लगभग अपने आँख-कान बंद कर मूक बन गयी है (read “Muted UNHRC Response Encouraging Islamic Genocide”, https://thecounterviews.com/articles/muted-unhrc-response-encouraging-islamic-genocide/) ।इस नरसंहार का एक ‘उग्र रूप’ अफगानिस्तान में चला जिससे वहाँ के लगभग सारे सिख समुदाय का पूरा लोप हो गया और ‘सौम्य रूप’ बांग्लादेश, मलेशिया और इंडोनेशिया में देखने को मिल रहा है। इस 'सौम्य रूप में हमें हर साल बांग्लादेश में हिन्दुओं व उनके मंदिरों, मूर्तियों व आस्थाओं पर आधात देखने को मिलता है।हिन्दुओं की प्रतिशत आवादी वहाँ भी लगातार घट रही है I

विभाजन विभीषिका का एक और पहलू है जिस पर अभी तक विस्तृत चर्चा नहीं हुई है और वह है नेहरू और कांग्रेस की गंदी राजनीति (read “विभाजन विभीषिका (भाग-2) और राजनीति”, https://thecounterviews.com/articles/partition-of-india-fallout-of/) ।इस गंदी राजनीति के तहत ‘नेहरू लियाकत’ समझौते के फलस्वरूप दोनों देशों के अल्पसंख्यकों को सुरक्षा गारंटी का आश्वासन था।पकिस्तान ने तो अपने अल्पसंख्यकों का नरसंहार करना शुरू कर दिया परन्तु कांग्रेस की मुस्लिम तुष्टीकरण निति में यहाँ के मुसलमान इतने फलने-फूलने लगे कि उनकी दिन दूनी रात चौगुनी जनसंख्याँ वृद्धि होने लगी।विभाजन पश्चात भारत में मुस्लिम आवादी ~8.4% था जो आज बढ़कर लगभग दूना हो गया है।इस आवादी में विघटनकारी अवैध बांग्लादेशी और रोहिंग्या हैं और विश्व के अनेकों आतंकवादी संगठनों के इशारों पर इस्लाम के नाम पर देशविरोधी गतिविधियों में सम्मिलित हैं।मुसलमान ज्यादातर समूहों में रहते हैं और कट्टरवादी मुल्लों की बातों पर ज्यादा यकीन करते हैं।मुल्ले आवश्यकतानुसार उन्हें भड़काकर देश-विरोधी तथा धर्म-विरोधी गतिविधियों के लिए उकसाते रहते हैं। यही कारण है कि जुम्मे के ख़ुत्बे के बाद ही अक्सर पत्थरबाजी देखने को मिलती है। इसी बढ़ती आवादी का अप्रत्याशित असर देखने को मिल रहा है कि हिन्दू-वाहुल्य भारत में मुस्लिम-वाहुल्य क्षेत्रों से शांतिप्रिय हिन्दुओं को कट्टरवादियों तथा जिहादियों द्वारा पलायन के लिए वाध्य किया जा रहा है।यह सिलसिला कश्मीर, असम, बंगाल, केरल के अनेकों जिलों तथा हरियाणा के नूंह, बिहार के किशनगंज-अररिया, UPके रामपुर व मुरादाबाद आदि में देखने को मिल रहा है।इन मुस्लिम वाहुल्य क्षेत्रों से हिन्दुओं पर यातनाएं की जाती है जिससे वे पलायन को मजबूर हो जाते हैं। 

नेहरूजी और कांग्रेस की बेरुखी

नेहरूजी और कांग्रेस की ‘विभाजन विभीषिका’ की दूसरी देनहै उत्तर पूर्वी राज्यों का ईसाई बाहुल्य होना;जिसकी तपिश में दशकों से वहाँ आग लगी है। स्वतन्त्रता के पूर्व से ही कांग्रेस का ईसाई तुष्टीकरण के कई निम्नलिखित दुष्परिणाम सामने आए हैं:-

  • ईसाई मिशनरियों ने सरेआम प्रलोभन देकर हिन्दू जनजातियों का धर्मांतरण शुरू किया
  • वहाँ कई ईसाई कट्टरवादी और आतंकी समूह जबरन धर्मांतरण करा रहे थे। इन समूहों ने अधिकांश पहाड़ी जमीन जबरन अधिकृत कर लिया जिनमें से बहुतेरे क्षेत्र मिशनरियों को चर्च बनाने के लिए दे दिए गए।
  • चर्च का प्रशासनिक अधिकार रोम को दे दिया गया।धर्मांतरण के लिए अवैध रकम वहाँ से आने लगा; साथ ही प्रलोभनों की ट्रेनिंग लिए योरोप देशों से ही पादड़ी और नन भी आने लगे ।
  • आकर्षक मिशनरी विद्यालय खोले जानें लगे जहाँ धर्मांतरण आसानी से कराया जानें लगा।

नेहरूजी ने इनमें से किसी समस्या का हल खोजने का प्रयास ही नहीं किया।इन सबों के परिणाम स्वरुप धर्मांतरण की गतिविधि पूर्वोत्तर से बंगाल, उड़ीसा, केरल तथा तामिलनाडु में भी फैलने लगा।उड़ीसा में पादड़ी ग्राहम स्टैंस की ह्त्या अवैध धर्मांतरण कराते हुई थी। ईसाई धर्मांतरण की यह विभीषिका नेहरूजी के दिनों से ही चला आ रहा है जो कांग्रेस पार्टी का 'ईसाई तुष्टीकरण' बन चुका है।ऐसा जाना जाता है कि इसमें सोनियां गांधी की भी सहमति है।आज जो मणिपुर जल रहा है, नागालैंड के बड़े भूभाग में अशांति है वह इसी विभीषिका का परिणाम है।

पुनर्विभाजन की संभावनाएँ

मुस्लिमों की जनसंख्याँ बढ़ना चिंता का कारण नहीं है वल्कि उन क्षेत्रों में इस्लामी कट्टरता तथा आतंकी गतिविधियों के बढ़ने की वास्तविकताएँ चिंताजनक हैं ।विगत में मुस्लिम वाहुल्य क्षेत्र गांधार, पंजाब व बंगाल भारत को खंडित कर चुकी है।इनकी बढ़ती आवादी कैंसर की बीमारी जैसी जानी जाती है; या तो आप इन्हें नियंत्रण में रखो नहीं तो ये आपको निगल जाएगी।हाल में सर्बिया से कोसोवो का अलग होना, दक्षिणी भाग से मुख्य सूडान का कटना इसका ज्वलंत उदाहरण है। तो मतलब यह कि विभाजन विभीषिका की आग 1947 से ही भारत में फैलती ही जा रही है और मुस्लिम तुष्टीकरण करती आ रही कांग्रेस का इनको पूरा सहयोग मिला हुआ है। कांग्रेस ने भली भाँती अंग्रेजों का 'बांटो और राज करो' दुष्ट निति समझ ली थी।कांग्रेस शुरू के ही दिनों से हिन्दुओं को जाति व वर्ग के आधार पर बाँट रखा है और उन्हें सामूहिक विकास से वंचित रखा है।यही कारण है कि हिन्दुओं के पिछड़ी जाति के लोग स्वतन्त्रता के ७५ सालों बाद भी पिछड़े ही हैं और अक्सर प्रताडना झेलते हैं।अगर कांग्रेस चाहती तो इनका उत्थान और विकास कब का हो चुका होता।इस तरह की उपेक्षा भी धर्मांतरण का कारण बनती है। 

समस्याओं का समाधान

भारत-भूमि तथा हिन्दू विचारधारा ही इस विभीषिका के उन्मूलन का पथ भी प्रशस्त करता है। उदाहरण है भारत का हर वह हिन्दू वाहुल्य क्षेत्र जहाँ से कभी किसी मुस्लिम या ईसाई को पलायन के लिए मजबूर नहीं होना पड़ा है। तो समाधान सामने " ही दीख रहा है : भारत के हर जिले को हिन्दू वाहुल्य बनाओ। लेकिन कैसे ? यह कहना आसान है लेकिन करना उतना ही मुश्किल। हमारे धर्मनिरपेक्ष देश में क्षद्म धर्मनिर्पेक्षी ऐसा होने नहीं देंगे।इसीलिए भारत को 'हिन्दू राष्ट्र' बनाना आवश्यक है जहाँ दो कार्य करने होंगे।एक तो कुरान पर गैर मुस्लिमों के मौलिक अधिकारों के हनन के फलस्वरूप उसपर प्रतिबन्ध लगाया जाएगा और दूसरे, बीते दशकों में जबरन धर्मान्तरित किए 1-2 पीढ़ी लोगों का घर वापसी हो और वे इस्लाम की आक्रामकता से बाहर आकर शान्ति से रह सकें। ऐसा अनुमान लगाया जा सकता है कि भारत के ‘हिन्दू राष्ट्र’ घोषित होने के महीनों या सालों में शान्ति चाहनें वाले 25-30% मुसलमान अपना धर्म परिवर्तन कर लेंगे और दूसरी तरफ 30-40% कट्टरवादी देश छोड़ चुके होंगे।इस प्रकार भारतीय जिहादियों को मारने की आवश्यकता कम ही होगी। बांग्लादेशियों तथा रोहिंग्याओं को वापस लौनें के लिए अल्टीमेटम देना होगा।इनको नकली भारतीय दस्तावेज दिलाने वालों पर सख्ती बरतनी पड़ेगी जिससे उनकी नागरिकता समाप्त की जाए।

इस्लाम के कैंसर से छुटकारा पाने का एक और तरीका है जिससे चीन अपने उइघुर मुसलमानों के ऊपर संयम रखा हुआ है (read “World Must Adopt Chinese model of Islam”, https://thecounterviews.com/articles/world-must-adopt-chinese-model-of-islam/) ।यह सुनने में तो ठीक लगता है और बहुतेरे मुस्लिम देश जैसे पाकिस्तान, अफ़ग़ानिस्तान, सऊदी, तुर्की आदि को मान्य भी है लेकिन अगर वैसा ही यहाँ भी किया जाए तो शायद संयुक्त राष्ट्र समेत बहुतों को मंजूर ना हो और मानवाधिकार हनन की बातें उठने लगे।यह तो विदित है ही कि कुरान धार्मिक विद्वेष फैलाता है इसीलिए चीन के समतुल्य कुछ प्रतिवंध तो लगाने ही होंगे।

उपसंहार

इन सबों से तो यह साफ़ हो जाता है कि विभाजन विभीषिका की मुख्य जननी कांग्रेस पार्टी है और वह भी विभाजन पश्चात नेहरू जी के समय से ही चला आ रहा है जो अब यहाँ के हिन्दुओं के लिए अभिशाप बन चुकी है।इस अभिशाप से भी निजात पाने का सरलतमतरीका है भारत को ‘हिन्दू राष्ट्र’ घोषित करना जो कांग्रेस पार्टी तथा उनके पिछलग्गू आसानी से नहीं होने देंगे।अगर देश का हिन्दू समुदाय भारत को हिन्दू राष्ट्र बनाने का प्रण कर ले तो यह मुश्किल काम भी आसान हो जाएगा (read https://thecounterviews.com/articles/if-world-can-have-islamic-christian-nations-why-not-hindu-rashtra/) । हम कांग्रेस या उनके ठगबंधन पर कभी विश्वास नहीं कर सकते।उन्हें जब भी मौका मिलेगा वे देश से फरेब करेंगे ही (read “फरेबी I-N-D-I-A जमात”, https://thecounterviews.com/articles/fraudster-india-jamaat/) । लेकिन एक बात बिलकुल तय है।भारत में अब इतने देशभक्त भी हैं जो देश के साथ विश्वासघात कर रहे किसी भी शक्ति के आगे सीना तान खड़े होने का हौसला रखते हैं।देश का तीसरा विभाजन कभी नहीं होगा चाहे इसके लिए जो भी करना पड़े।हाँ।हिन्दुओं को अपना अधिकार शायद छीन कर ही लेना पडेगा।

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