चलते चलाते : “छत्र तले”
एक छत्र के तले खड़े हैं।
डाकू-चोर और गुण्डे हैं।
देशी-दुश्मन,चट्टू-चिल्ले,
ग़द्दारों के झुण्ड अड़े हैं।
वामपंथी औ कोंग्रेसियों के,
शुभचिंतक ही साथ-साथ हैं।
पाकिस्तानी,खलिस्तानी,
मुस्लिम,निहंग के वेश धरे हैं।
नीयत इनकी कितनी खोटी,
सिंकती रोज है झूठी-रोटी,
भारत की बर्बादी मकसद,
यही राजनीति क्या इनकी ?
हल्ला-दंगा करा रहे हैं।
भ्रष्टाचारी कुड़ुक रहे हैं।
कृषी-नियम को आड़े लेकर,
जेबें-भर कर कड़क रहे हैं।
अड़ियल-टट्टू,पप्पू-पिट्ठू,
बार की बाला तड़प रही है।
मिशनरियों की कार्य-योजना,
सरदारों को बदल रही है।
वेटिकन चाहे क्रिश्चियन राष्ट्र,
मुल्लों की ख्वाहिश इस्लाम,
हिन्दू बँट कर टुकड़े-टुकड़े,
बने ग्रास अब इन दोनों के।
हिन्दू नोट-बैंक नेता के,
मुस्लिम वोट-बैंक हैं इनके।
हक को मारा कोंग्रेसियों ने,
संविधान में भी हिंदू के।
चरणजीत चन्नी और सिध्धु,
जगनरेड्डी और खेजड़ीवाल,
संजय, उद्धव और अघाड़ी,
सोनियाँ इन पर करे सवारी।
गले में डाल गुलामी पट्टा,
नाच नचाये पुतलों जैसा,
गैंग-तेईस का देखो हाल,
नहीं स्वार्थसिद्धि तो भाग।
अफगान और पाकिस्तान,
मारे लात न जागे ज्ञान,
करतारपुर में लुटी(उठी) लुगाई,
सरदारों को दिखा न भाई।
मंदिर-गुरुद्वारे हैं जलते,
हिन्दू ! आये दिन हैं मरते।
बहू-बेटियाँ अपहृत होते,
ये बेशर्म क्या नहीं जानते?
सिध्धु करता है जयकार।
इमरान है इसका यार,
यारी में लूटे घर-बार,
तस्कर आते सीमा पार। डॉ सुमंगला झा।