सिलाई के टाँके
आजकल 'रेडीमेड' ऐसा शब्द इस समाज में आ गया है जो हर ज़रूरत पैसों के एवज़ में रेडीमेड मिल जाते हैं,यहाँ तक की बच्चे भी हमारे नामी-गिरामी व्यक्तित्वों को रेडीमेड मिल जाते हैं। यद्यपि गृहणी होने के नाते मेरा तात्पर्य सिलाई-बुनाई के क्षेत्र से है तथापि स्त्रियों की इसमें रूचि कम हो गयी है। शायद इसलिए कि रूचि एवं अवसर की विविधता का विस्तृत आसमान उनके सामने है। एक कारण यह भी है कि बनी-बनाई चीजें बाजार में आसानी से उपलब्ध हैं।इन उपलब्धियों ने जहाँ व्यवसायिकों को फायदा पहुँचाते हुए करोड़ों गृहणियों से रोजगार छीना है वहीं उनके हुनर एवं प्रति उत्पन्न अंदरूनी कलाकृतियों के उत्प्रेरक विचारों को भी कुछ भोथर बना, उन्हें घर से बाहर निकल, बड़े -बड़े व्यवसायिकों के कारखानों में काम करने के लिये मजबूर कर दिया है।इसके विपरीत प्रभाव परिवारों पर भी प्रकट हो रहे हैं। संघर्षशील, क्रियाशील विचारशील व्यक्तित्व को कुंद कर व्यापारियों ने प्रत्येक घर को अपना बाजार बना लिया है।रेडीमेड कपड़े व्यवसायिकों के प्रतियोगी अन्य व्यवसायिक दल न हो कर वस्तुतः सिलाई में दक्ष वे महिलाएँ हैं जो गृहकार्य के साथ-साथ इन बाजारों से घर बैठे ही टक्कर लेती थी। आजकल बड़े-बड़े परिधान- कारखानों में काम करती महिलाएँ अपनी मेहनत से कारखानों के मालिकों को जितना फायदा पहुँचा रही हैं, उन्हें तुलनात्मक रूप से अपनी प्रतिभा का मुआवजा कम मिल रहा है, साथ ही एक ही प्रकार के कार्य मे यंत्रवत लगे रहने के कारण उनकी सृजनशीलता पर भी अंकुश लग गया है। आर्थिक उपार्जन की मजबूरी में वे मात्र यांत्रिक मजदूर बन कर रह गए हैं, शोषण की शिकार भी होती हैं, वहीं डिज़ाइनर के नाम वाले लोग जम कर पैसे कमाते हैं।
सिलाई-कढ़ाई अपने सृजनशीलता एवं कलात्मक भावों के ताने-बाने को,उसकी मजबूती को,धागों के द्वारा प्रस्तुत करती है। इसके कई प्रकार हैं जैसे- कच्चा टाँका, पक्का टाँका, तुरपाई, हेमिंग, सम्मिलित टाँका, बखिया, बटन टाँका, सिकड़ी/सांकल टाँका, गिरह टाका, कांथा टाका, प्रति टाका, दोसूती टाँका, सिंधी टाँका, गुजराती आईना प्रारूप टाँका जाने कितनी कलाकृतियाँ जो घर-घर की स्त्रियों की उंगलियों पर सजती रहती थी आज लुप्तप्राय हो चुकी हैं। कच्चा टाँका तो सटीकता उभारने से पहले प्रयोग में लाये जाते हैं ताकि परिवर्तन का विचार आने पर उसे आसानी से उधेरा जा सके। ऐसे भी सटीकता से सिलाई सम्पन्न होने के बाद कच्चे टाँके के धागे को धीरे से खींच कर निकाल लिया जाता है जिससे बाद की आवश्यक सिलाई यथावत बनी रहती है। प्रायः ये सभी प्रकार के टाँके दो टुकड़ों (कपड़ों) को मजबूती से जोड़ने या उस पर सजावटी कलाकृतियों को उभारने के लिए प्रयोग में लाये जाते हैं। बनी-बनाई वस्तुओं की उपलब्धियाँ एवं उसकी बहुतायत ने नवीन रचनात्मक सृजनात्मकता को सीमित कर दिया है।
इसी संदर्भ में जब अपने राजनेताओं को देखें तो पाते हैं कि बने-बनाये राजनेताओं की बहुतायत है जो प्रायः किसी न किसी वंशावली नामक कारखाने से उत्पादित माल की तरह राजनीतिक बाजार में आ गए हैं, सच्चे हुनरमंदों की प्रतिभा को कुंद करने के प्रयास में लग गए हैं। वंशपरम्परा के कारखानों से उत्पादित तैयार माल (नेता) के प्रति रुचि रखने वाले नेता विचारों से भोथड़ हो चुके हैं। उनके स्वयँ के सोच-विचार या निर्णय लेने की क्षमता शून्य हो गयी है। मानसिक गुलामी से उभर कर कुछ भी नया न सोचने-विचारने के कारण ये यांत्रिक भेड़ों जैसे एक ही वंशावली के संकेतों के अनुगामी बन गए हैं । हालात यह है कि कार्यकर्ताओं की मेहनत का फायदा नेता उठाते हैं एवं आम जनता दिमाग गिरवी रख, कुछ मजदूरी के एवज में हुक्म के गुलाम बन जाते हैं ।इसके दुःखद उदाहरण हैं; बंगाल, राजस्थान, बिहार, झारखण्ड आदि के विचारशून्य नेताओं के उच्छृंखल वक्तव्य भंडार। इनके वाद-विवाद की चर्चा घर्षण की कर्कशता उत्पन्न करती है। जिसे सुन कर लगता है कि ये कहीं न कहीं ब्राह्मण वंशावली की मुक्त विचार अभिव्यक्ति की परंपरा से विमुख, स्वाभिमानी वस्तुतथ्यों की विचारधारा से भटक, वर्णशंकर वंशावली के वैचारिक दिवालियेपन के संवेदन हीन अनुगामी बन चुके हैं। यद्यपि अन्य भी बहुत से स्वाभिमान विहीन नेता राजनीति में भरे पड़े हैं, परन्तु प्रबुद्ध कहे जाने वाले कोंग्रेस एवं आर जे डी के दो झा जी एवं टी एम् सी के शांडिल्य गोत्र की चंडी पाठ सुनाने वाली बनर्जी कुछ ज्यादा बेशर्म बयानबाजी करते हैं। मोदी विरोधियों की टुकड़े-टुकड़े में बँटी टोलियाँ नीतीश जी के नेतृत्व में पटना में इकट्ठी तो हो गयी परन्तु इन्हें जोड़ने के लिए सिलाई के किस टाँके का प्रयोग किया जाए ये सोचनीय विषय बन गया, पटना में कच्चा टाँका तो लगाया गया लेकिन ढीला होने के कारण टुकड़े इधर-उधर खिसक गये।
पुनः -पुनः की कोशिश में पक्का टाँका का "प्रयोग पक्के चोर अलायन" के बैनर तले लगाना आरम्भ हुआ। इसमें तुरपाई, बखिया, गाँठ, दूसूती, सम्मिलित टाँका भी लगाया गया परन्तु हालत कुछ ऐसी हुई कि कच्चे टाँके के ऊपर पक्की सिलाई पड़ने से पहले ही किसी नवसिखवा ने कच्चा टाँका खींच लिया। बिना किसी सकारात्मकत विचारधारा के सिर्फ देश विरोधी हरकतों एवं भ्र्ष्टाचार को बढ़ावा देने के लिए गठबंधन की सिलाई राजनीतिक दर्जियों के द्वारा की तो गयी है लेकिन उनके गाँठ भरे धागे से सड़े हुए कपड़े की सिलाई कब तक टिकेगी ये तो वक्त ही बताएगा। सिलाई चाहे कितना भी मजबूत बखिया, गाँठ, या सम्मिलन सिलाई कला क्यों न हो इसे उधेरने वाले कलाकार भी बहुत ही कुशल दर्जी हैं जिन्हें सिलना एवं उधेड़ना दोनों ही आता है। गुप्त सिलाई से भी बेमेल टुकडों को सिलना कठिन होता है साथ ही अगर धागा पुराना एवं घटिया हो तो उधेरने की भी जरूरत नहीं होती है वे अपने आप ही टूटते-उधड़ते चले जाते हैं। मोदी विरोधियों के पार्टीयों को जोड़ना या सिलना ठीक ऐसा ही है जैसे (भ्रष्ट), सड़े हुए फटे कपड़ों को सिलना है जो कभी कहीं से तो कभी कहीं से फट जाता या अपने आप उधर भी जाता है।
ऐसा नहीं है कि अन्य पार्टियों में सब कुछ ठीक ही चल रहा है ढुलमुल रवैये वाले कमजोरों की हुनरहीन नाकामियों ने सत्ताधारी पार्टियों को भी नुकसान पहुँचाया है। मोदीजी की पार्टी से भी कई गण्यमान्य नेता विलग हो चुके हैं तो कई अपने अनुभव हीनता एवं वक्तव्यों के अनियंत्रित हो जाने कारण निष्कासित भी किये गए हैं। अनुशासन एवं कठोरता की कठिन डगर पर चलने वाली लक्ष्मी विहीन लोकतान्त्रिक भारतीय जनता पार्टी की सबसे बड़ी कमजोरी यह भी है कि ये अपने कार्यकर्ताओं के जीवन की रक्षा करने में अनेकानेक जगहों पर असमर्थ हो जाती है। परिणामस्वरूप विपक्षी पार्टियाँ अपने मातहत गुण्डों एवं पुलिसकर्मियों का प्रयोग कर मोदी समर्थक आम जनता तथा बीजेपी के कार्यकर्ताओं की धुनाई कर उत्पात मचाने में सफल हो जाती है।
बेगुनाहों की हत्याओं का सिलसिला तो थमने का नाम नहीं ले रही है; यद्यपि गैर बीजेपी शाषित प्रदेशों में वहाँ के सत्ताधारी नेता पैबंद लगा कर अपने गुनाहों को छुपाने में भी माहिर हैं। जहाँ फटा हिस्सा ज्यादा नजर आता है वहाँ केंद्र सरकार पर दोषारोपण कर देते हैं । यूँ तो जहाँ कहीं भी मौका मिलता है विपक्षी पार्टियाँ भी एक-दूसरे की पार्टी के नेता मंत्रियों के गुप्त सिलाई के बखिया उधेड़ने से बाज नहीं आते हैं लेकिन जहाँ बीजेपी पार्टी के मंत्रियों की बात आती है सभी भ्रष्टाचारी एकजुट हो अपने अपने ढंग से सिलाई उधेड़ने के तरीके और ढीली सिलाई ढूंढ़ने में लग जाते हैं।कहावत भी है : "चोर-चोर मौसेरे भाई".... सभी चोर "बेलगाड़ी" पर एक साथ सवार हो कर बी जे पी नेताओं की कमजोरियाँ ढूँढ सारे धागे अलग करने में लग जाते हैं।
धागों की मजबूती एवं अनुशासन की सिलाई चाहे कितनी भी मजबूती से क्यों डाला गया हो निरन्तर खींचा-तानी में कभी धागा, कभी सिलाई, तो कभी कपड़े फट ही जाते हैं, ऐसा ही कुछ बीजेपी वालों के साथ भी हो रहा है। बीजेपी में भी कुछ ऐसे नेता हैं जो स्वयँ की मजबूत छवि न बना पाने के स्थान पर मोदीजी की ही छवि लेकर जनता के ह्रदय में पैठना चाहते हैं। ऐसा ख्याल हानिकारक है। कई नेता को अयोग्यता के कारण यदि मनमाना स्थान का टिकट न मिलता है या उन्हें चुनाव लड़ने से रोका जाता है तो अपनी नाकामयाबी का दोष मोदी को देते हुए विषवमन करते हुए भ्रष्टाचारियों के चँगुल में फँस जाते हैं, जहाँ वे मजदूर बन अपने आका को आर्थिक फायदा पहुँचाते नजर आते हैं। जनता के लिए महाराष्ट्र के वसूली सरकार को भुलाना कठिन है।
कांग्रेस के आलाकमान तो शातिर सियार की तरह ही हैं। इस्तेमाल करो, जेबें भरो तथा काम निकलने के बाद अपने विरुद्ध बोलने वालों या गुलामी न स्वीकार करने वाले नेताओं को चाटुकारिता न करने वालों को निकाल फेंको। वह भी ऐसे ठिकाना लगाओ कि वे राजनीती तो क्या दुनियाँ से भी कैसे लापता हो जायें यह भी रहस्य ही रह जाए। छोटे-मोटे लोगों की तो कहीं चर्चा भी नहीं होती है बड़े-बड़े सूरमाओं की (शास्त्री जी एवं अन्य भी बहुत से नेताओं ) बातें भी आज तक रहस्य ही बनी रह गयी है।
कांग्रेस के काले कारनामों के लम्बे फेहरिस्त रहस्य ही बने रहते हैं क्यों कि इसे वे प्रकाशित होने ही नहीं देती है। बोलने वालों की हत्या करवाना, बखिया उधेड़वाना, टुकड़ों में कटवाना, गुप्त सिलाई लगाना तोड़ना, चिथड़े करने के लिए दस गुण्डों को लगा देना आला कमान दर्जिन के लिए मामूली बात है। अभिव्यक्ति की आजादी की बातें करने वाले कांग्रेस के राज्य में न तो ये आजादी पहले थी न ही उनके द्वारा शासित प्रदेशों में आज ही है। अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर मोदी विरोधी, हिन्दू विरोधी, देश विरोधी गति विधियों को बढ़ावा देना इनका काफी पुराना अभ्यास है। आजकल इस तरह के अभ्यास का प्रायोगिक उदाहरण कर्नाटक राज्य में होने वाली हिन्दुओं एवं जैन साधु की हत्या तथा मणिपुर में होने वाले उत्पात हैं।
गाहे-बगाहे विभिन्न समुदायों को एक-दूसरे के खिलाफ उकसा कर, गैर बीजेपी राज्य में निशाना बना, जान-माल विहीन करना, पलायन के लिए कश्मीरी पंडितों की तरह मजबूर करना कोंग्रेसी पालित गुंडों का प्रिय सगल बन गया है। यहाँ बंगाल की चर्चा व्यर्थ है क्यों कि वहाँ डण्डेबाजी, पत्थरबाजी, आगजनी पुराने हथियार हो गए हैं, आजकल वहाँ बॉम्ब, जेलेटिन की छड़ें, आधुनिक हथियारों की बहुतायत है जो वहाँ की ममतामयी देवी के कृपाप्राप्त तस्करों के मार्फ़त आयातित होते रहते हैं एवं टी. एम्. सी. विरोधियों के खिलाफ दीपावली की पटाखों की तरह इस्तेमाल किये जाते हैं। कहने की जरुरत नहीं है कि टी. एम. सी के नेताओं का टाँका बंगलादेशी घुसपैठियों एवं रोहिंग्याओं के साथ मजबूती से सिला है इसीलिए जो कोई भी इस गुप्त सिलाई को उधेरने की कोशिस करते हैं वे बिना चेतावनी के ही स्वर्गगामी हो जाते हैं।
मौत का खेला किसी डायन को आनंद देता है; यह सिर्फ किस्से कहानियों में ही नहीं होता है, इसका प्रत्यक्ष दर्शन बंगाल में किया जा सकता है। केरला स्टोरी यहाँ पर्दे पर नहीं, प्रत्यक्ष दिखाई जाती है। यहाँ की सरकार के निर्देशानुसार पुलिस प्रशासन भी शांति का ओढ़ना ओढ़, चुप्पी साधे बेबस नागरिकों पर होते जुर्म के खेल को देखती रहती है।जुर्म के विरुद्ध आवाज उठाने वालों के वस्त्रों के साथ शरीर के धागों को भी उधेरने का काम ममता दर्जिन दीदी द्वारा अपने आकाओं को खुश रखने के लिए किया जाता है। यदि वह ऐसा नहीं करेगी तो उनका भी बखिया उन्हीं हथियारों से उनके आकाओं द्वारा उधेड़ा जा सकता है जिन्हें आयातित करके ममतामयी का ह्रदय आतंकीयों के लिए उदारवादी बना हुआ है।
"देश बना है आज अखाड़ा ,नेताओं ने गुण्डा पाला।
जनता भेड़ -बकरियों जैसे,हत्यारों के बने निवाला।
राजस्थान ,बंगाल ,बिहार,झारखण्ड या मणिपुर हो,
महिलाओं को ढाल बना कर,दंगे आगजनी उकसा कर,
देश विरोधी तस्कर गुण्डे मकसद में हो रहे सफल हैं।"