भागते भूत की लंगोटी : हनुमान चालीसा की शक्ति : महाराष्ट्र और बंगाल
बचपन की कुछ बातें अब भी जनमानस के मस्तिष्क में उतनीं ही हैं जितनी उन दिनों थीं। १९५० और ६० के दशकों में गाँवों और छोटे कसबे में रात-बिरात किसी सूनें रास्ते, जंगलों में या किसी बड़े पेड़ की नीचे से जानें में डर सा लगता था।मस्तिष्क में भूत-भूतनी, पिशाच-पिशाचिनी और ताल-बेताल का वहाँ अदृश्य रूप में विद्यमान रहना एक आम अवधारणा थीं। ये सब भगवान् शिव के गण व अलंकर्ण माने जाते हैं। ऐसा माना जाता था कि अगर कोई शिव या फिर शिव के अंश हनुमान की स्तुति करे तो भूत पिशाच भाग जाते हैं। यह भी माना जाता था कि स्तुति की आवाज जहाँ तक जाएगी वहाँ तक ये भूत पिशाच नहीं रह सकते और यह भी कि शिव स्तुति या हनुमान चालीसा में इतनी शक्ति है कि इसे सुनकर वे दुरात्माएँ अतिक्रुद्ध होकर अक्सर नंगी नाचते हुए भागने लगतीं हैं। ऐसी स्थितियों में हम सब बच्चे जोर जोर से हनुमान चालीसा जापनें के आदि हो चुके थे। आज जब कुछ राजनैतिक क्षुद्र-बुद्धियों को हनुमान चालीसा के खिलाफ महाराष्ट्र में आवाज उठाते सुन रहे थे और उनका अब पतन होने जा रहा है तो एक प्रश्न स्वतः ही मन में उठ खड़ा होता है "हनुमान चालीसा में इतनीं शक्ति ?"
बड़े शहरों में न तो सुनसान रास्ता रहा है, न जंगल और न ही कुछ ऐसे पेड़ जिस पर भूत-पिशाच का वास हो। तो ऐसी शहरों में डर का माहौल कम होता है। लेकिन राजनीति के गलियारों में ऐसे भूत-भूतनी, पिशाच-पिशाचिनी और ताल-बेताल आदि का होना अक्सर देखा गया है। ये शिव स्तुति या हनुमान चालीसा की स्तुति सुनकर अतिक्रुद्ध होकर गुस्से से आग बबूला होकर नाचने लगते / लगतीं हैं। ऐसी ही एक पिशाचिनी का नाच बंगाल के कुछ लोगों ने जब देखना चाहा, उनहोंने हनुमान चालीसा और ‘जय श्री राम’ का उद्घोष किया। बस क्या था, पिशाचिनी गुस्से से विकराल आकृति बना अट्टाहास करने लगी।
ऐसा ही एक नाच आज-कल महाराष्ट्र में भी चल रहा है जहाँ हनुमान चालीसा का जाप करते ही एक ‘भूतिया सेना’ तथा 'बेताल प्रवृत्ति' के उसके नेता गुस्से से आग बबूला हो जाते हैं। उनके एक बेताल नेता को हरामखोर के नाम से भी जाना जाता है। हनुमान चालीसा जपने वालों को वो राक्षसों की तरह डराते हैं कि उन्हें २० फुट जमीन के नीचे दफना देंगे। भगवान का लाख लाख शुक्र है कि ऐसे भूतों से महाराष्ट्र की भोली भाली जनता को मुक्ति मिलने जा रही है।
महाराष्ट्र के उन भूतो और बेतालों मनाने के लिए आप या तो ‘अजान’ का पाठ लाउडस्पीकर से करें या फिर हिन्दुओं को गाली दें। फिर ये प्रसन्न रहते हैं। बेचारे बालासाहेब ! आत्मा उन्हें कोसती होगी कि उन्होंने तो हिन्दुओं की रक्षा के लिए 'शिव-सेना' का गठन किया था परन्तु उनके कुपुत्र ने उसे ‘भूत-सेना’ क्यों और कब बना दिया ?