Chief Editor Dr SUmangala Jha

पंजाब तो गयो

'आप' पार्टी की प्रचण्ड जीत के साथ पंजाब में पंजबियों के भविष्य का भी फैसला हो गया है। सरदारों में भी क्रिस्चियन सरदार, मुस्लिम सरदार, खालिस्तानी सरदार, निहंग मुस्लिम सरदार,देशभक्त सरदार के अलावे भी बहुत से विभाग बनने अगर आरम्भ हो जाये तो कोई आश्चर्य नहीं होगा। सबसे बड़ी समस्या राष्ट्रीय सुरक्षा को लेकर आरम्भ होगी जिसके लिए नेताओं को चिंतन करना आवश्यक है। जिस प्रकार प्रधानमंत्री की यात्रा को कुछ समूहों द्वारा बाधित किया गया था; उससे साबित होता है कि छद्मवेशी आतंकवादियों की जनसंख्या सीमावर्ती क्षेत्रों में बढ़ी हुई है। भारतीय राजनीति में यहाँ की गणतांत्रिक व्यवस्था को क्षतिग्रस्थ करने तथा यहाँ की पुण्य भूमि को साधुजनों के लहू से लाल करने के लिये कुछ छद्मवेशी पाकिस्तानियों और खालिस्तानियों के समूह,अपनी गति-विधियों को कुछ शातिर दिमाग वाले, सफेदपोष नेताओं के संरक्षण में कार्यन्वित करने में लगे हुए हैं।

प्रत्येक वर्ष गुरुपर्व पर पाकिस्तान जाने वाले तीर्थ यात्रियों के जत्थों में से पंजाबी सिख्खों की औरतों का अगवा हो जाना, इस्लाम कबूल कर पाकिस्तान में ही रह जाने की घटना प्रायः सुर्खियों में रही है। संभावना है कि अब 'आप पार्टी" के कार्यकाल में इस तरह की घटनाएं आम होंगे एवं न्यूज में भी न आने पायेंगे। दिल्ली में शाहीन बाग,रोहिंज्ञाओं, बांग्लादेशी मुसलमानों,मौलाओं तथा ताहिर हुसैन जैसे गुण्डों को आर्थिक, सामाजिक सुरक्षा एवं सहायता देने वाले खेजड़ीवाल अब देश के दुश्मनों को भी समृद्ध और शक्तिशाली बनाने के कार्य में तत्परता से लग जाएंगे तो कोई आश्चर्य नहीं होगा।

पंजाब के इतिहास में कोंग्रेस और अकाली दलों का सदैव से वर्चस्व रहा है। कोंग्रेस की परिवारवादी कोंग्रेसी पार्टी की राजनीति में खास कर छद्मवेशी नेहरू गाँधी परिवार की 'इस्तेमाल करो और फेंको'की नीति के कारण खालिस्तानी और भिंडरावाले का उदय और अंत भी हो गया है, परन्तु उसकी रुह अभी भी पंजाब की हवा और पंजबियों की आत्मा में घुस कर उत्पात मचाने में लगे हुए हैं। भिंडरावाले के समय में स्वर्ण मंदिर आतंकियों के लिये सुरक्षित किला बन चुकी थी जिसका खात्मा करने के लिए लगभग कई हजार फौजियों की जान चली गयी हैं।
इंदिरा की नीति में पहले पंजाब में हिन्दुओं को प्रताड़ित करवाया गया फिर भिंडरावाले को खत्म करने के लिए सेनाओं के जवानों की आहुति दी गयी। ध्यान देने योग्य बात है कि यहाँ भी स्वयँ को सत्तारूढ़ रखने के लिए मौत का खूनी-खेल बड़ी चतुराई से खेला गया है लेकिन लोगों को इंदिरा की कुटिलता समझ में नहीं आयी।

इंदिरा कोंग्रेस का खूनी खेल यदि यहीं खत्म हो जाता तो राहत होती परन्तु इंदिरा की मौत के बाद हजारों सिख्खों का कत्लेआम हुआ है। दिल्ली तथा अन्य प्रदेशों में भी गर्दन में टायर डाल-डाल कर सिख्खों को जिन्दा ही जलाये जाने वाली घटना ने समूचे देश में कुछ दिनों के लिए गौरवपूर्ण सिख्खों की जिंदगी को असुरक्षित तथा भयग्रसित कर दिया। व्यापक परिपेक्ष्य से अवलोकन करने से प्रकट होता है कि कोंग्रेसियों की नीति देशभक्तों से ज्यादा देशद्रोहियों के प्रति वफादार रही है। ध्यान दें! तो पायेंगे कि बहुत से राष्ट्रवादी विचार धारा के कट्टर देशभक्त, हिंदुत्व के समर्थक नेता गाहे-बगाहे असामान्य मौत का शिकार हुए हैं। संचार साधनों पर नियंत्रण तथा व्यक्तिगत फायदे के लिए तथ्यों को छुपाने की कला में माहिर कोंग्रेस;हिन्दुओं के लिए दोधारी तलवार की तरह रही है, जिसका ज्ञान होते-होते कई राज्यों में,कई जिलों में हिन्दू अल्पसंख्यक हो गये हैं। इन स्थानों पर हिन्दुओं को मौत का खतरा तो है ही,साथ ही उनकी हैसियत किसी भी उत्सव के दौरान मात्र दरी बिछाने वाले कार्यकर्ताओं की तरह हो गई है।

मंदिरों की भूमि का जबरन अधिग्रहण,मंदिरों का टूटना,चर्च, मज़ार एवं मस्जिदों का कुकुरमुत्ते की तरह जगह-जगह पनपना,हिन्दुओं के भविष्य के लिए 'कश्मीर फ़ाइल' जैसे भयावह दृश्यों की ओर संकेत करता है।
ऐसे कार्यों में नकली गाँधी परिवार की गुलामी करने वाले कोंग्रेसी सरकार की तरह ही, विशेष समुदाय की तुष्टिकरण की नीति के तहत; दोहरे व्यक्तित्व के नेता खेजड़ीवाल भी सहयोग देंगे; ऐसी संभावना विकसित हो रही है। आंदोलनों को कुचलने,अपने फायदे के लिए आंदोलन के नाम पर खूनी खेल खेलना, अल्पसंख्यक हिंसक मुस्लिम समुदाय को खुश करने के लिए हिन्दुओं के विरुद्ध नित नए कानून बनाना जहाँ कोंग्रेस की पुरानी बिसाती चाल है; वहीं खेजड़ीवाल की 'आम आदमी की पार्टी 'भी ऐसे ही नक्शेकदम पर चल पड़ी है।

किसान आंदोलन को समर्थन देने वाले ज्यादातर नेताओं का अढ़तियों के साथ चोली-दामन का सम्बंध रहा है। कोंग्रेसी,कम्युनिस्ट,अघाड़ी,अकाली दल,पागल टिकैत के अलावे भी बहुत सारे नेताओं का इसमें हाथ है। अगर ध्यान दिया जाए तो व्यापारिक संस्थाओं पर परोक्ष या प्रगट रूप में नेताओं का वर्चस्व छाया हुआ है। मध्यवर्गीय तथा निम्नवर्गीय किसानों की मेहनत और उनकी आमदनी का बड़ा हिस्सा नेताओं के पेट में जाता है। अर्थात किसान शोषक जमींदारों के चंगुल से छूटे तो गुण्डों,नेताओं अढतियों के चंगुल में फँस कर शोषित हो रहे हैं। ऐसी बहुत सी बातों का ज्ञान सामान्य जनता या किसानों को नहीं है; क्योंकि फायदा उठाने वाले गुण्डे किसी भी किसान हितैषी सामाजिक कार्यकर्ता को किसानों तक पहुंचने नहीं देते हैं। जबरदस्ती के हिस्सेदार बने हुए नेताओं और अढतियों द्वारा किसानों को बहकाने, बरगलाने, झूठ की खुराक से दिमाग को भरने का काम किस मंसूबों से किया जा रहा है,ये सत्य तो'किसान आंदोलन"के समय ही खुल कर सामने आया है।

किसान आंदोलन के दौरान दिल्ली का घेराव, लालकिले पर खालिस्तानी झंडों को लगाने का खालिस्तानी उपक्रम, पंजाब में तोड़फोड़, मोदीविरोधी नारे,मोदी को धमकाना एवं हत्या की साजिशों की घटनाओं की बहुतायत होने के कारण देशद्रोहियों के चेहरे से नकाब उतरने आरम्भ हो गए हैं। चुनाव के दौरान "फ्री के वादों का फॉर्मूला" जो दिल्ली को बर्बाद करने, रोहिंज्ञाओं तथा पाकिस्तानियों को सुरक्षित रखने के लिए किया गया था वह पंजाब में भी काम कर गया। दिल्ली की सीमाओं पर खेजड़ीवाल ने खालिस्तानियों ,किसानों, देशद्रोहियों को दिल्ली की जनता के हिस्सों के पैसों से खूब खिलाया-पिलाया था। विदेशी खालिस्तानी समर्थकों द्वारा उगाहे गए काले धन से काफी सुविधाओं से नवाजा था। 'आप'की सरकार खुजलीवाल ने किसानों के साथ बैठ, मोदीविरोधी नारे लगा,मोदीजी को कोस-कोस कर,पंजाब में अपनी चुनावी जमीन बनाई और जीत भी गए।

आंदोलन कराने वाले कोंग्रेसी और अकाली दलों का अंदाजा कि पंजाब में कोई अन्य पार्टी सेंध न लगा पायेगा; गलत निकला। आपसी लड़ाई में वे भूल गए कि मौके का फायदा उठाने वाला एक 'लोमड़-बंदर' भी किसान आंदोलन का समर्थन कर, किसानों के दिमाग से खेल रहा है। ये शातिर दिमाग वाला धूर्त, हर बीस मिनट बाद प्रत्येक चैनल पर कोरोना से भी ज़्यादा खतरनाक वॉयरस की तरह प्रकट होता है और विज्ञापन पर करोड़ों खर्च करता है। मॉफ़लर धारी,मूंछों वाला चश्मिस,दूसरों के द्वारा किए गए काम का क्रेडिट भजाने में तो कुशल है ही, गुन्डों को पालने एवं अपनी पार्टी के नेताओं के कुकर्मों को छुपाने में भी अतिकुशल है। पंजाब में 'आप पार्टी' की जीत वस्तुतः वैसी ही रही जैसा कि दो बिल्लों की लड़ाई में बन्दर रोटी खा गया हो।

अब इस सीमावर्ती पंजाब क्षेत्र में विज्ञापन-विशेषज्ञ,कथनी-करनी में भेद रखने वाला, गिरगिट की तरह रंग बदलने वाला, लोमड़ से ज्यादा चालक, नाग से भी ज्यादा विषैला, गुण्डों, दंगाईयों और बलात्कारियों का रहनुमाई करने वाला शातिर-दुष्ट अपने जहर से वातावरण को विषाक्त ही बनाएगा या बनवायेगा, इसकी पूरी संभावना है। दिल्ली के हर कोने में शराब का ठेका खोलने वाला वॉयरस अपने दारूबाज चेले के साथ मिल कर पंजाब को नशामुक्त करेगा या हर कोने में ..दम मारो दम...म..का डी. जे. बजायेगा,ये तो समय ही बताएगा। हाँ इतना पक्का है कि हर समय कटोरा लेकर केंद्र से पैसे की सहायता के लिए हाथ फैलाये खड़ा रहने वाला 'ये' शख़्स,पैसे मिलते ही कुछ पाकिस्तानी मानसिकता वाले लोगों को 'फ्री' का लाभ देगा,जम कर घोटाला करेगा तथा जो भी इसे और इसके काले कारनामों का पर्दाफाश करेगा,उसे ये प्रताड़ित करेगा। अनुमान है कि ज्यादातर इस 'आप' पार्टी' के नेता भ्रष्टाचार पर लीपा-पोती करते हुए, शातिर धूर्तों की सहायता से, मिशनरियों के धर्मपरिवर्तन के कार्य को बढ़ावा देते हुए, पंजाब की जमीन पर मजारों,मस्जिदों तथा चर्च के निर्माण में सहायक बनेंगे। दिल्ली की जनता की ही तरह पंजाब के हिन्दुओं और सरदारों को अब यही सोच कर, पाँच साल तक इस 'आप पार्टी' की सरकार को झेलना है कि "ओखल में सर दिया तो मूसल का क्या डर।"

'आप पार्टी' के जीतते ही दिल्ली में हिंदुओं के दुकान जलाये गए,दंगे हुए,हिन्दुओं ने पलायन किया,कोरोना के समयान्तराल में बिहार, यू.पी.,उत्तराखंड के मजदूर,धोखे से भगाए गए,हजारों की मौत होती रही लेकिन ऑक्सीजन तथा दवाइयों के घोटालों में 'आप' और 'कोंग्रेसी' पार्टी के लोग तल्लीनता से लगे रहे। प्रत्येक चैनल पर वक्तव्य और प्रचार का सत्यापित कार्यान्वन से कोई मेल नहीं रहा है।

अब पंजाब में खेजड़ीवाल के शागिर्द के असली रंग दिखने शुरू ही हुए हैं। बिरयानी खिलाने वाले,किसानों के हक की बात करने वाले नेता! आज कपास उगाने वाले गरीब किसानों पर जो खराब फसल के मुआवजे के लिए प्रदर्शन कर रहे थे पुलिस द्वारा पिटवाये गए हैं। दस तो अस्पताल में पड़े हुए हैं। खेजड़ीवाल के चेले भगवंत मान अपने सारे चुनावी वादे भूल कर गए हैं। "ये तो शुरुआत है, आगे आगे देखिए होता है क्या?

'कश्मीर फ़ाइल' पर खेजड़ीवाल का व्यंग्यात्मक प्रहार दर्शाता है कि कश्मीरी पंडितों के दुःख-दर्द,पलायन-भयावह मौत स्त्रियों की लुटती अस्मत की सच्ची घटनाएं, इस बेगैरत, बेशर्म के लिये सिर्फ मनोरंजन का साधन है। 'आप पार्टी' के नेताओं को ठहाके लगाते देख कर ऐसा लगा कि यह 'खेजड़ीवाल' राक्षसों के ही जमात का क्रूर-राक्षस रावण है।

विस्थापित कश्मीरियों के दुःखों को देख भावुकता में लिप्त होने वाले लोगों को,फिल्मों का पोस्टर लगाने वाले गन्दे लोग बता कर खेजड़ीवाल ने देश के प्रत्येक प्रताड़ित-पलायित स्त्री-पुरूष एवँ गरीबों का उपहास किया है जो असहनीय है। तत्काल रामायण की पंक्ति याद आ गयी।

"सून बीच दसकंधर देखा,
आवा निकट जती के बेषा।
जाके डर सुर-असुर डेराहीं,
निसि न नींद दिन अन्न न खाहीं।

खेजड़ीवाल के लिए लिखी गयी पंक्ति हैं

सभा बीच दसकंधर देखा।
जन्म लिया है जती के बेषा।
क्रूर हंसी सुर-असुर डेराहीं,
निसि-दिन ये मानुष ही खाहीं।

अफसोस है ऐसे संवेदनहीन राक्षसी प्रवृतियों के समर्थक हमारे वही नेता हैं जो कभी भ्रष्टाचार हटाने,आतंकवाद खत्म करने और स्त्रियों की सुरक्षा के लिए बड़ी-बड़ी बातें करते रहे थे। मोदी विरोधी मकसदों के साथ किसानों के साथ बैठ, किसानों के अधिकार की बात करने वाले, मोदी को कोसने वाले खेजड़ीवाल, पंजाब में चुनाव जीतते ही गरीब-किसान विरोधी, देश-विरोधी मूल-मंसूबों को कामयाब करने में लग गए हैं। क्या धूर्तता से परिपूर्ण गिरगिटी चाल चलने वाला, साँप से भी ज्यादा विषैला "आप पार्टी" के मार्गदर्शक खेजड़ीवाल पंजबियों का कुछ भला करेंगे?
बहुत ज्यादा संभावना है कि ये केरल, बंगाल, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़ तथा झारखंड के सरकार की तरह वहाँ के स्थानीय हिन्दू एवं सिख्खों को निचोड़ते हुए, देश को खोखला करने वाले घुसपैठिये आतंकी समुदाय का एवं स्वयँ का भी तोंद भरते जाएँगे। ऐसे रंग बदलू नेता तो दुश्मन देश चीन एवं पाकिस्तान से भी ज्यादा खतरनाक हैं। परन्तु 'फ्री' के लोभ से एक देश-विरोधी, मोदी-विरोधी पार्टी को वोट देकर सत्तारूढ़ किया है तो उसके द्वारा किये गए अत्याचारों को झेलना तथा स्वयँ की मूर्खता का भुगतान तो पंजबियों को करना ही होगा। अब तो वाहे गुरु पंजाब की रक्षा करें।

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