हर मस्जिद के नीचे शिवलिंग मत ढूंढो; लेकिन…..
भागवत जी के वक्तव्य
जब २ जून २०२२ को मोहन भगवत जी ने RSS के एक समापन समारोह में ज्ञानवावी मामले पर चल रहे देशव्यापी चर्चा पर यह कहा था कि हर मंदिर के नीचे शिवलिंग ढूंढनें की जरुरत नहीं है तो उन्होंने ठीक ही कहा था लेकिन इसका तात्पर्य कई राजनितिक दलों ने गलत लगाया I हालाँकि यह सत्य है कि वहाँ भागवत जी से भी थोड़ी चूक हुई थी I चूक यह थी कि हर मस्जिद के नीचे भले ही नहीं लेकिन हर उस जगह पर जिससे हिन्दू समाज के एक किसी बड़े वर्ग की आस्था जुडी हो और वहाँ एक प्रमुख मंदिर के भग्नावशेष होने की संभावना हो, तो एक प्रारम्भिक जाँच करनी तो बनती ही है I यह बात अगर भगवत जी ने नहीं भी कही तो कोई बड़ी बात नहीं है I भारत में इस्लामिक बर्बरता के जानकार हर व्यक्ति जानते हैं कि यहाँ जितने भी इस्लामी शासक हुए उनके लिए जिहाद भी एक मकसद था I उस जिहाद में जबरन हिन्दुओं का धर्म परिवर्तन, उनकी बहु बेटियों का अपहरण, उनकी ह्त्या और उनकी आस्थाओं पर चोट करना भी एक मकसद होता था जिसका जिक्र उनके द्वारा लिखे या लिखवाए गए कई पुस्तकों में गर्व से किया जाता था और वह जिक्र औरंजेब, बाबर, खिलजी या अन्यों द्वारा भी किया गया था I
मुसलमान आक्रांताओं की फितरत
मुसलमान आक्रांताओं की तो हमेशा से यही फितरत रही कि हिन्दुओं की आस्था पर गहरी चोट पहुँचे I लेकिन उस समय के हिन्दू चुप क्यों रह गए ? क्या उनका खून पानी हो गया था ? वे तब भी बहुसंख्यक थे I उन्होंने ऐसे बर्बर शासकों और उनकी जी-हुजूरी करने वालों के सर धड़ से अलग क्यों नहीं कर दिए ? इन सबों के पीछे एक बड़ा कारण यह था कि हिन्दुओं में एकता की कमी थी I प्रतिरोध करने वाले ज्यादातर राजपूत और ब्राह्मण थे जिन्होंने अभूतपूर्व अनेकानेक बलिदान दिए लेकिन उनको अपनें ही हिन्दुओं के बड़े धड़े का साथ नहीं मिला I डर और आतंक के उस कालखंड के परिपेक्ष में इसे समझा भी जा सकता है लेकिन विभाजन पश्चात स्वतंत्र भारत के हिन्दुओं के बड़े तबके को क्या हो गया ? स्वतन्त्रता के ७५ साल बाद भी वे बाबर या औरंगजेब की जूती चाटने को तैयार हैं I आप कांग्रेस, TMC, RJD या समाजवादी पार्टी के हिन्दुओं को ही ले लीजिए I मुसलामानों का वोट पाने के लिए ये अपनी अस्मिता भी बेचने को शायद तैयार हो जाएंगे I इनके पुरखों को न तो तब हिन्दू आस्था की कोई चिंता थी और न ही आज कोई आत्मग्लानि है I इन्हें बस सत्ता की भूख है I
नेहरू द्वारा बनाया क्षद्म धर्मनिरपेक्ष
नेहरू जी ने हमें यह कैसा भारत दिया है जिसमें हम अपनी आस्थाओं के अनेकों प्रमुख प्रतीकों पर हुए कुठाराघातों का भी जिक्र नहीं कर सकते (read “विभाजन विभीषिका (भाग-1) और भारतीय धर्म” https://thecounterviews.in/articles/indian-partition-and-indian-religions/) I अयोध्या, काशी या मथुरा, जो हमारी आस्थाओं के प्रतीक हैं, उनका भी जिक्र नहीं कर सकते क्योंकि कांग्रेस ने साल १९९१ में एक ऐसा काला कानून (Places of Worship Act) बना दिया था जिससे इस्लामी कालखंड में किए गए महत्वपूर्ण बर्बरताओं के खिलाफ कोई कानूनी गुहार भी नहीं लगाई जा सकती है I क्या यह हिन्दुओं के मौलिक अधिकारों का हनन नहीं है ? वह भी तब, जबकि मुसलमानों के लिए अलग भूभाग 'पाकिस्तान' दे दिया गया हो ?
कांग्रेस का क्षद्म धर्मनिरपेक्ष
हाँ ! यह बात तर्कसंगत है कि हर मस्जिद के नीचे मंदिरों के भग्नावशेष ढूंढना शायद ठीक न हो लेकिन महत्वपूर्ण मंदिरों, जिससे हिन्दुओं के बड़े वर्गों की आस्था जुडी हो, उसकी खोज तो अतार्किक हो ही नहीं सकती I हर हिन्दू को यह जानने का पूरा अधिकार है कि उनके अनेकानेक प्रमुख पूजा स्थलों का क्या हुआ I कभी भी, कहीं भी, अनेकानेक नया मंदिर बना कर उसमें मूर्ति प्रतिष्ठान कराया जा सकता है लेकिन जिन प्रमुख मंदिरों से हिन्दुओं के देवी देवताओं की गतिविधियाँ, विशिष्ट कार्य या उनकी महत्ता-माहात्म्य जुडी हो, उसे कभी भी या कहीं भी नहीं बनाया जा सकता I ऐसे बहुमूल्य मंदिरों या पूजास्थलों का खोज-बीन और जीर्णोद्धार तो बनता ही बनता है और ऐसे सैकड़ों मंदिर हो सकते हैं I फिर अगर ऐसे प्रमुख मंदिरों के खोज में, जिनसे लाखों करोड़ों लोगों की आस्थाएँ जुडी हो, अगर कोई भी अड़चन आ रही हो तो उसे दूर करना अत्यावश्यक है I इसीलिए Places of Worship Act का निरस्त होना अत्यावश्यक है जो कांग्रेस की सरकार ने "मुस्लिम वोट-बैंक" की लोलुपता में हिन्दुओं के साथ दुर्भावनापूर्ण व्यवहार कर मुसलमानों को खुश करने के लिए बनाया था I यह कानून सम्प्रति सुप्रीम कोर्ट में पुनरावलोकन के लिए निलंबित है जिसके लिए केंद्र सरकार से अपना दृष्टिकोण पेश करने को कहा गया है I यह मोदी सरकार की जिम्मेवारी है कि उपरोक्त नियम में ऐसे हर मंदिरों के भग्नावशेष को क़ानून के दायरे में लाने की अनुमति दी जाए जिसका हिन्दुओं की आस्था से विशेष सम्बन्ध है I आक्रांताओं द्वारा तोड़े गए छोटे छोटे मंदिर जिनका हिन्दू धर्म से कोई ख़ास जुड़ाव न हो, ज्यादा मैनें नहीं रखता I ऐसे अपवित्र किए गए मंदिरों में हिन्दू पूजा अर्चना भी नहीं करना चाहेंगे I ऐसे मंदिरों के लिए भगवत जी की उक्ति जायज हो सकती है I
मोहन भगवत जी का १९ दिसंबर २०२४ का वह वक्तव्य भी महत्वपूर्ण है जिसमें उन्होंने कहा था कि अयोध्या राम मंदिर के बाद कुछ लोग हर मस्जिदों के नीचे मंदिर ढूंढनें की मांग कर हिन्दुओं के नेता बनने की कोशिश करने लगे हैं I यह तो गलत बात है I लेकिन इसी के साथ एक बड़ा सवाल खड़ा होता है कि भारत में आखिर लगभग १०० करोड़ हिन्द्दुओं का प्रतिनिधि कौन है ? हमारे लगभग सभी शंकराचार्य तो हिन्दू जनमानस से लगभग सदैव से ही कटे रहे हैं (पढ़ें “हिन्दुओं में धर्म-गुरु और नेतृत्व का अभाव”, https://thecounterviews.in/articles/lack-of-apex-hindu-seers-and-preachers/ and “राम जन्मभूमि, सनातन धर्म और हमारे शंकराचार्य”, https://thecounterviews.in/articles/ram-janmbhumi-sanatan-dharma-shankaraacharya/) I अतः उनसे इस समय तो कोई उम्मीद नहीं लगाई जा सकती I दूसरी तरफ विश्व हिन्दू परिषद् के लोग चुनकर नहीं जाते अतः वह हिन्दुओं का प्रतिनिधित्व नहीं करती I हिन्दुओं की भलाई के लिए RSS एक बहुत बड़ी और महत्वपूर्ण संस्था स्वतन्त्रता पूर्व से ही सक्रिय रही है लेकिन हिन्दुओं का एक बड़ा तबका जो मुस्लिम वोट बैंक का मुंहताज है, RSS को अपना घोर विरोधी के रूप में देखता है (read “Why are opposition politicians, Islamists and Pseudo-Secularists so Averse to RSS?”, https://thecounterviews.in/articles/opposition-politicians-islamists-pseudo-secularists-averse-rss/) I
बीजेपी और बालासाहेब ठाकरे की शिव सेना जैसे हिंदुत्व वादी राजनितिक दल हिन्दुओं का समर्थन तो करती है लेकिन संविधान के दायरे में रहकर, दबे जुबान I दूसरी तरफ देश के मुसलमानों का प्रतिनिधित्व करने वाला All India Muslim Personal Law Board मुखर रूप से अक्सर संविधान को ताख पर रखकर मुसलमानों की तरफदारी करता है I यहाँ तक कि चुनाव से पहले कुछ प्रमुख मुसलमान नेता या मुल्ले अपना अपना फतवा निकालकर मुसलमानों को अमुक राजनैतिक दल के लिए मतदान करने का निर्देश देते रहे हैं और इन सब पर निर्वाचन आयोग या सुप्रीम कोर्ट "बहरी और गूंगी" बनी रही है I भारत का यह कैसा अजीव संविधान है जो विषमताओं और भेदभाव पूर्ण हो ? अतः एक ओर जहाँ मुसलमानों के प्रतिनिधित्व के लिए कई अधिकृत संस्थाएँ हैं, हिन्दुओं के लिए कोई नहीं है I भला हो मोदी सरकार का कि पिछले १०-११ साल में लोगों को इन धार्मिक मामलों को उठाने की स्वतन्त्रता मिली है नहीं तो कांग्रेस की सरकार ऐसे हर हिन्दू को, जो अपने धर्म के लिए आवाज उठाते हैं, शायद जेल की सलाखों के पीछे बंद कर दिया होता I
नेहरू जी के क्षद्म धर्मनिरपेक्षता ने भारत के हिन्दुओं को क्षद्म ज्ञान देने की भरपूर कोशिश की है कि देश में धार्मिक सौहार्द बनाए रखने की जिम्मेवारी हिन्दुओं की है I जबतक हिन्दू अपने धार्मिक आस्थाओं को उपेक्षित होते हुए देखकर भी चुप रहेंगे तबतक धार्मिक सौहार्द बना रहेगा I ज्ञानवापी या कृष्ण जन्मभूमि के जीर्णोद्धार की बात से कांग्रेस, TMC, RJD, SP आदि राजनितिक दलों का 'मुस्लिम वोट बैंक' विचलित हो जाएगा अतः देश में धार्मिक सौहार्द बिगड़ने का खतरा बढ़ जाएगा I अगर हम और आप पिछले १००० वर्षों में भारतीय मुसलमानों को समझ पाए हैं तो यह मानकर चलिए कि वे तो भगवान् शंकर और भगवान् कृष्ण की असीम आस्थाओं की धोखे से हथियाए भूमि भी हमें कभी समर्पित नहीं करेंगे I जैसे अयोध्या की रामजन्मभूमि हमें १५० वर्षों की सघन कानूनी लड़ाई के बाद अनेकों रामभक्तों की बलि देकर मिली है, उस हिसाब से ज्ञानवापी और कृष्ण जन्मभूमि कितने सालों के बाद और कितनों की प्राणाहुति देने के बाद मिलेगी, आप स्वयं अनुमान लगा सकते हैं I वैसे कांग्रेस द्वारा बनाए गए वक़्फ़ बोर्ड क़ानून का भारत में एक ऐसा नया रवैय्या चल पड़ा है कि किसी भी जमीन को जिस पर हजारों साल पुराना महत्वपूर्ण मंदिर क्यों न स्थापित हो, रातों रात अपनी संपत्ति घोषित कर दो I यह काला क़ानून जमीन के असली मालिक को कोर्ट कचहरी में भी न्यायिक प्रक्रिया का हक़ नहीं देता (पढ़ें “Waqf Acts of Loot India”, https://thecounterviews.in/articles/waqf-acts-of-loot-india/) I
भारतीय क्षद्म धर्मनिरपेक्षता का एक मात्र समाधान
हाँ ! एक और आसान समाधान यह है कि भारत को एक "हिन्दू या भारतीय धर्म राष्ट्र" घोषित कर दें जिसमें हिन्दुओं, जैनों और सिखों एवं उनकी सारी भौतिक, सामाजिक, धार्मिक व नैतिक मूल्यों को न्याय की विशिष्ट प्रक्रिया में रखी जाए (read “विश्व में ४७ इस्लामी, १६ ईसाई, ४ बौद्ध और ११ यहूदी राष्ट्र हो सकता है : तो १ “हिन्दू राष्ट्र” क्यों नहीं ?”, https://thecounterviews.in/articles/if-world-can-have-islamic-christian-nations-why-not-hindu-rashtra/) I तब हो सकता है कि आपके अपने ही जीवन काल में आपकी आस्थाओं का प्रतीक वे सारे स्थल आपको मिल जाएँ जिसे आक्रांताओं ने अपने समयखण्ड में जर्जर कर दिया था I लेकिन क्या मुसलमान और उनके तलवे चाटने वाले ‘वोट बैंक’ प्रत्याशी राजनैतिक दल ऐसा होने देंगे ? शायद कभी नहीं I
गत वर्षों में जब ज्ञानवापी में शिवलिंग होने का मामला प्रकाश में आया था तो कई मुसलमान एवं उनकी इस्लामी संगठनों ने दावा किया था कि दूसरे धर्मों के पूजा स्थलों में सिर नवाना उनके लिए हराम है I यह तो सर्वज्ञ है कि ज्ञानवापी मस्जिद में भगवान् विश्वनाथ मंदिर के सारे अवशेष मिले हैं I तो इसका मतलब यही हुआ कि अबतक वहाँ नमाज पढ़ने वाले वे सारे मुसलमान हराम या हरामी हैं जैसे बोको हराम हों या कई अन्य ? भारत के ४००००+ तोड़े या परिवर्तित मंदिरों में से अगर मुट्ठीभर मंदिरों को भी मस्जिद में परिवर्तित कर उसमें नमाज पढ़ी जाती रही है तो उतने सारे मुसलमान हराम को अपनाते रहे हैं I मुसलमानों का तोड़े या परिवर्तित मंदिरों में नमाज अदा करना कोई नई बात नहीं I विश्व में अनेकों ऐसे मंदिर या मस्जिद हैं (पढ़ें “Islam and Many Ayodhyas of the World”, https://thecounterviews.in/articles/islam-and-many-ayodhyas-of-world/) I यहाँ तक कि मक्का और मदीना के पूजा स्थल भी किसी और के थे जिसे मुहम्मद ने तोड़ कर अपना नमाज स्थल बना लिया जो सैद्धांतिक तौर पर तो हराम ही है परन्तु दुनियाँ-भर के मुसलमान इसे सबसे पवित्र मानते हैं I इसीलिए तोड़े या परिवर्तित मंदिरों में नमाज अदा करना इनके लिए कोई नई बात नहीं है I इनके हराम की हद तो तब हो गयी जब तुर्की के सर्वोच्च न्यायालय ने अपने प्राचीन 'सोफ़िया हेगीआ' चर्च को मस्जिद घोषित कर दिया I अब कल्पना कीजिए कि उस चर्च में नमाज पढ़ने वाले मुसलमान किस तरह के हरामी होंगे ?
सारांश
मोहन भागवत जी ने मुसलमान आक्रांताओं द्वारा भारत में किए गए दसियों हजार मंदिरों के विध्वंस, उनकी खोज और जीर्णोद्धार के बारे में समय समय पर जो बयान दिए हैं वे अपनी जगह आंशिक रूप से सही हो सकते हैं I वैसे यह बात भी अकाट्य सत्य है कि वे सारे ध्वस्त किए गए मंदिर जिसका सनातन धर्म से भौगोलिक व ऐतिहासिक महत्ता एवं माहात्म्य है, भुलाया नहीं जा सकता I इस लिए सरकार द्वारा बनाए हर वो क़ानून जो ऐसे मंदिरों की खोजबीन के आड़े आता हो, अवश्य बदलना चाहिए I भारत में शान्ति और सौहार्द्य बनाए रखने के नाम पर ऐसे मामलों पर सदा के लिए पर्दा नहीं डाला जा सकता I सौहार्द्य बनाए रखने की सारी जिम्मेवारी हिन्दुओं की ही नहीं हो सकती I इसीलिए मोहन भगवत जी का बयान अपनी जगह ठीक हो सकता है लेकिन इस पर आँख मूंदकर अमल करना मूर्खता होगी I आज हिन्दुओं को अपनी आवाज सशक्त रूप से रखने के लिए एक अधिकृत प्रतिनिधित्व की भी जरूरत है I वैसे हिन्दुओं के लिए सबसे आसान और उपयुक्त रास्ता है भारत को "हिन्दू या भारतीय राष्ट्र" घोषित कर देना जिसके मार्फ़त वे अपनी खोई प्रतिष्ठा पुनर्स्थापित कर सकते हैं I भारत में क्षद्म धर्म निरपेक्षता की कोइ आवश्यकता नहीं है I