Naughty rats

धारावाहिक: मेरी, तेरी, उसकी बातें: उत्पाती चूहे (भाग 1)

प्रायः 'टॉम एंड जेरी:बच्चों की पसंदीदा सीरियल रही है।हँसने-हँसाने तक तो सीरियल की कहानियाँ अच्छी लगती है परन्तु जब खुद के घर में चूहे खुराफात मचाते हैं तो उन परेशानियों को झेलने वाले की हालत दयनीय हो जाती है।ऐसा लगता है कि घर के सदस्यों एवं चूहों के बीच अघोषित युध्द चल रहा हो। ऐसे सामान्य तौर से चूहे की कारस्तानियाँ लगभग सभी लोगों के अनुभव में कहीं न कहीं शामिल होता ही है।

बचपन से अभी तक के मेरे भी अनुभव अनोखे रहे हैं।भारत के गाँव, कस्बे, शहरों आदि में यहाँ के सभी धर्म, जाति,समुदायों की तरह ही सभी जीव-जंतु इंसानों के बीच समझौते के साथ मिल जुल कर ही रहते हैं। वह चाहे कितना भी खतरनाक साँप, बिच्छू, नेवला, बिल्ली, कुत्ता, गीदड़, लोमड़ी, लकड़बग्घे, बंदर, भालू, हाथी एवं अन्य कोई भी जानवर क्यों न हो! सच्चाई तो यह है कि हमारे ऐसे साधारण मनुष्य सह-अस्तित्व की परिभाषा को सार्थक कर,जीव-जंतुओं के साथ भी रहने के लिए मजबूर होते हैं क्योंकि जाएँ तो जाएँ कहाँ?

अन्य जानवरों की बातें बाद में करेंगे ,आज तो चूहे की एक कारस्तानी का वर्णन करती हूँ। डी.आर.डी.ओ. बैंगलोर के अस्थाई निवास को यहाँ साइंटिस्ट हॉस्टल के नाम से जानते हैं। प्रायः ये होस्टल सभी तीन से चार एवं कुछ पाँच माले के भी हैं। नीचे बीच के हिस्से का विस्तृत फर्श भी पक्के हैं जो किसी बड़े आँगन की तरह ही लगता है। शाम के समय छोटे बच्चों के खेल एवं बच्चों माताओं का भी यह पसंदीदा स्थान है जहाँ किस्से- कहानियाँ ,गप -शप चलते रहते हैं। गृहणियों के गप-शप के बीच उनकी कई परेशानियों का हल भी स्वतः ही निकल आते हैं अतः वार्ता-कथा का जमघट लगभग प्रतिदिन के कार्यक्रम का हिस्सा होता है।

हम स्त्रियों के मध्य चूहे की समस्या एक सामान्य मुद्दा बन चुकी थी, जिसके निवारण का उपाय हम सभी अपने -अपने अक्ल और हैसियत के अनुसार करते थे एवं उन परिणामों की चर्चा भी करते थे। उन दिनों मेरे परिवार का आवास तीसरे माले पर था तो दिन में हमें चूहों के उत्पात से राहत थी परन्तु रात में वे शायद टॉयलेट के पाइप से आ जाते थे। उन्होंने टॉयलेट के दरवाजे को कुतर -कुतर कर बाहर आने लायक छोटा सा छेद बना लिया था। रात के वक्त रोशनी बुझाते ही रसोई में प्रवेश कर उनका पूरा परिवार कचरे का डब्बा उलट कर समूची रात हुड़दंग मचाते थे। आलू-प्याज या अन्य कोई सब्जी यदि बाहर रह गयी हो तो वे भी कुतरे होते थे या गायब हो जाते थे। परेशान हो कर मेंटीनेंस वालों को बुलाया गया, टॉयलेट एवं स्नान घर दोनों के दरवाजे के नीचे हमने मनुहार कर स्टील शीट लगवा दिया एवं खुश हो गए कि अभी चूहे का आना बंद हो जाएगा ! क्योंकि चूहे के डर से बच्चे या स्वयँ मैं भी बिस्तर से उतर कर रसोई या कहीं और जाने से कतराते थे।

कहावत तो है कि" चूहे की तरह डरपोक ",लेकिन क्या सचमुच चूहे डरपोक होते हैं? नहीं जी!.. बिलकुल नहीं होते हैं...वे तो इतने ढीठ होते हैं कि अगर सामना हो जाए... तो ...यूँ घूरते हैं ..जैसे पूछ रहे हों कि कौन हो तुम?... क्यों बाधा डालने आये हो मेरे काम में ?...अन्य लोगों की बातें तो अभी नहीं बता सकती हूँ परन्तु मेरे साथ तो सदैव से ऐसा ही होता आया है कि मैं चूहों के सवालों का उत्तर दिए बिना वहाँ से खिसक जाने में अपनी भलाई देखती हूँ।

साइंटिस्ट होस्टल में भी यही होता था कि हम उलटे पाँव वापस किसी सुरक्षित जगह बैठ, उसके जाने का इंतज़ार करते थे। स्टील शीट लगवाने के बाद हम खुश थे कि आज की रात चैन से सोएँगे एवं नींद टूटने पर रशोई या कहीं भी घर के अंदर परेशानी नहीं होगी। लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ, नियत समय पर ढक की जोरदार आवाज आई ड्रेनेज के ऊपर की जाली उखड़ चुकी थी। कोई बात नहीं,स्टील शीट लगा है तो बाथ रूम टॉयलेट में घूम कर चूहा चला जायेगा। लेकिन यह भी नहीं हुआ।

चूहे ने चौखट को कुतरना आरम्भ कर दिया था। आवाज से ऐसा लग रहा था कि कई चूहे कुतरने के काम में लगे हुए हैं।हँसी भी आ रही थी,डर भी लग रहा था एवं नींद में तो खलल पड़ ही रहा था लेकिन.... कुटुर कुटुर कूट,..कुटुर कुटुर कूट...कुटुर कुटुर कूट ... की आवाज समूची रात मेरी नींद हराम किये हुए था। सुबह के चार बजे के आसपास आवाज आनी बन्द हुई तो सोचा शायद चूहे वापस चले गये हैं.... चलो थोड़ी देर सोया जाए,परन्तु ये क्या ?... एका एक ऐसा लगा जैसे घर में भूचाल आ गया हो, कचड़े का डब्बा लुढ़का, मसाले के डब्बे लुढ़क-लुढ़क कर फर्श पर बिखरने लगे, कुछ के ढक्कन खुल जाने से मसाले-दाल-चने आदि भी बिखरे से महसूस हुए, बर्तन, ग्लास, कटोरियाँ, छोटी-बड़ी प्लेटें, सभी चीजें जो खुले ताखे पर करीने से सजे होते थे, उसके गिरने की आवाजें निरंतर आती रही। मेरी हिम्मत नहीं थी कि उठ कर देखूँ कि वास्तव में हो क्या रहा है? बच्चे भी आवाज सुन कर उठ चुके थे .....मम्मी देखो चूहा हमारे पढ़ने के टेबल पर चढ़ गया है, मेरे सारे पेन-पेंसिल बिखर गए,मम्मी मेरे बैग कुतर रहा है। जो भी हो जैसे-तैसे पाँच-साढ़े पाँच तक सब्र किया,सूरज निकलने से पहले चूहे हंगामा मचा कर चले गए थे, बाथरूम, रशोई, बैठकी का जो हाल था कि देख कर रोना आ रहा था। औरतों से जिक्र किया तो उन्होंने बताया कि चूहा तुमसे नाराज है, उसे तंग नहीं करो। वह तो कचरा ही खा कर जाता था ..तुमने उसे रोका इसीलिए हंगामा मचाया है, मेरे साथ भी ऐसी घटना घटी है। बताती हूँ....।

उस दिन पहली बार मुझे एहसास हुआ कि इस छोटे लेकिन ताकत जानवर से पंगा लेना कितना खतरनाक हो सकता है। इन्हें भी गुस्सा आता है, फिर ये देखने में भी तो इतने बड़े होते हैं जैसे कोई छोटी बिल्ली हो। लेकिन क्या ऐसे हट्टे-कट्टे चूहे बिल्ली से भी ये डरते होंगें?... लगता तो नहीं है....शायद नहीं...बिल्कुल नहीं डरते होंगे...जरूर भाग जाते होंगें। इस प्रत्यक्ष घटना के अनुभव के बाद मुझे बचपन में पढ़ी हुई कहानी 'पुनर्मुसिको भव' की याद आ गयी।

इस कहानी के प्रत्यक्ष द्रष्टा होने के कारण मैं तो यही कह सकती हूँ कि इसके ऐसे मोटे हट्टे-कट्टे चूहों से तो हमारी ऐसी औरतें डर कर ही रहेंगी...हे चूहे खा ले जो खाना है और ले जा जो ले जाना है तेरा ही घर है। हम चार आलू,चार प्याज कम से भी काम चला लेंगे। ...हे गणपति के वाहन हमें बख़्श दो!...आप भी शांति से खाते-पीते जीते रहो एवं ज्यादा नुकसान पहुँचाये बिना मुझे भी जीने दो।...ऐसे तो गणपति से भी प्रार्थना है कि.... हे गणपति अपने वाहन को अपने पास ही रखो यहाँ मत भेजो भगवान ....बड़ी समस्या खड़ी हो जाती है रोज-रोज बिखरे समान और कचड़े की सफाई में पस्त हो जाती हूँ।

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