मेरी तेरी उसकी बातें: बदला लेने वाले चूहे (भाग-5)

धारावाहिक कहानी: मेरी तेरी उसकी बातें: बदला लेने वाले चूहे (भाग-5)

चूहे के नाम से ही कुछ मुहावरे याद आते हैं-जैसे '' मारे डर के चूहा हो गया'' लेकिन क्या ये चूहे सचमुच डरपोक होते हैं ? नहीं जी बिल्कुल नहीं होते हैं, ये बहादुर भी होते हैं, चालक भी होते हैं एवं वे अपने परिवार जनों को तकलीफ पहुँचाने या उन्हें नष्ट करने वालों से बदला भी लेते हैं।

बात बंगलोर के ही साइंटिस्ट होस्टल डी.आर. डी.ओ. की है जहाँ चूहों के उत्पात से सभी दुःखी थे, विशेषतः गृहणियों को तो उत्पाती चूहों की जमात ने नाक में दम कर रखा था। डरने वाली स्त्रियाँ तो चूहे देखते ही सावधान हो खिसक लेती थी परन्तु बहादुर और बुद्धिमान औरतें चूहों को चुनौती देती थी। बहादुरी दिखाने वालियों में मेरी एक सहेली भी थी जिसके ज्ञान भंडारण में चूहों को मारने और पकड़ने के विभिन्न उपाय भरे पड़े थे: जैसे चूहे दानी, चूहे चिपकने वाले बोर्ड, चूहों की दवाइयाँ आदि-आदि।

चूहेदानी या चिपकने वाले बोर्ड द्वारा ज्यादा से ज्यादा घुसपैठिये, आतंकियों में से एक या दो चूहे फँसते या चिपकते हैं परंतु जब आक्रांताओं की संख्या ज्यादा हो तो गोलियों की बौछार या छिपे रहने की जगह को बॉम्ब उड़ा देना ही बेहतर होता है। उत्पाती चूहों के लिए खुशबूदार जहर युक्त भोज्य पदार्थों के प्रयोग भी उन्हें बॉम्ब से उड़ाए जाने जैसा ही होता है जिसमें कई चूहे एक साथ मरे पाए जाते हैं।

मेरी सहेली ने भी एक साथ कई चूहों को मारने का विचार कर, बाजार से जहर युक्त केक लेकर, घर के सभी कमरों में जगह-जगह डाला जिसका परिणाम भी लगभग सकारात्मक ही था। कई दिनों में घर के अन्दर छुपे हुए प्रजननशील चूहे-चुहिया बाल-बच्चों समेत स्वर्गवासी हो गए, लेकिन मुख्य अपराधी मोटा; शायद उन जमातियों की संख्या में इजाफा करने वाला नायक चूहा नहीं मारा गया था। मरे हुए छोटे-बड़े, बच्चे चूहों को बाहर कचड़े के ढेर में फेंक दिया गया जहाँ अन्य चूहे भी कचड़ा खाते एवं वहीं घूमते भी रहते थे।

दो-तीन दिन तो मेरी सहेली के घर में शान्ति रही लेकिन उसके बाद उसी सप्ताह उसका फोन आया कि वह हॉस्पिटल में डॉक्टर के पास आई है जहाँ उसे रेबीज या टिटनेस का ( पक्का पता नहीं है) इंजेक्शन लेने की सलाह दी गयी है। उत्सुकता वश मैं भी उसके पास हाल-चाल पूछने पहुँच गयी थी कि आखिर हुआ क्या है? आगे का हाल उसी के शब्दों में : "रोनी सूरत,बुझी-बुझी आँखें एवं चिड़चिड़ापन के साथ कुछ इस प्रकार था----देखिए न जी! मुझे मेरी दाँए हाथ की दो अंगुलियों में चूहे ने इतनी जोर से काटा कि खून बह रहा है। .......
"..... आँ... 'ऊं...ऊं....ओह !..."

कैसे? ..... ......पता ... नहीं कैसे?.....'रात में परिवार के सभी लोग (पति-पत्नी, बेटी-बेटा) एक ही कमरे एक साथ ही मच्छर दानी में टी. वी.. देखते-देखते सो गए थे, मैं तो बिल्कुल किनारे थी, चूहा मच्छर दानी के अन्दर आ गया, किसी की नींद नहीं टूटी, उसने किसी को छुआ भी नहीं था... वह सभी को पार कर जाने कैसे मेरे पास आया.. ..मेरे चौंकते ही कूद कर मेरी ही अंगुलियों को काट कर.. मुझे चीखते देख,... घूरते हुए, ...बच्चों के पाँव के पास से मच्छर दानी से बाहर भाग गया....सभी की नींद टूटी गयी....जब तक कोई कुछ समझ पाता चूहा कुछ चीजें ढनमना कर भाग गया था....... सोचिए न जी ! कैसा है ! ....मच्छरदानी अच्छी तरह बिस्तर के किनारे से दबा हुआ था.... जाने कैसे अंदर आया?......मुझे काट कर भाग गया। ...... सिर्फ मेरी बेटी के पाँव के पास थोड़ा सा मच्छरदानी खुला था...काफी मोटा चूहा था। ... मैं तो बहुत डर गई थी; मेरे चीखने से सभी डर गए थे. जी। ...देखिए न जी। ..कितनी जोर से काटा है ....रात में खून निकल रहा था....दे खिए उसके दाँत कितनी गहराई तक गए हैं, लगता है मेरी उंगलियों को काट कर ही खा जाने वाला था।...उफ्फ.....खैर, मैंने अंगुलियों को सहानुभूति से देखा...दाँतों की गहराई का तो पता नहीं क्योंकि पट्टी उसने खुद बाँध रखा था परन्तु उसके चिन्ता की गहराई जरूर मुझे भी चिंतित कर रही थी।.....खैर प्रतीक्षा खत्म हो गयी.....कुछ ही समय में डॉक्टर ने उसे अन्दर बुलाया, पट्टी की ...इंजेक्शन दिया..दवा दी एवं वह अपने घर,.....मैं अपने घर आ गयी।

सनसनीखेज समाचार की तरह ही चूहे द्वारा अंगुलियों के काटे जाने की खबर समूचे होस्टल में फैल गयी; जहाँ अन्य औरतें भी सहानुभूति प्रदर्शित करने एक-एक कर आने लगी एवं अपने-अपने अनुभव साझा करने लगी। बात-चीत के दौरान पता चला कि जहर देकर चूहों को मारने वाली कई बहादुर औरतों को चूहों ने काटा है। मजे की बात है कि सभी औरतों की कहानियाँ लगभग मिलती जुलती थी। चूहों ने उनके उन्हीं हाथ की, उन्हीं अंगुलियों को काटा था जिसके द्वारा उसने जहरीले केक के टुकड़े जहाँ-तहाँ रखे थे। वे उंगलियाँ बाँयां हाथ का हो या दाहिना हाथ का, दस्ताने पहन कर जहर वाले केक के टुकड़े बिखेरे जाने वाला हाथ हो या बिना दस्ताने के ! चूहों ने उंगलियां पहचान कर अपने दाँत गड़ाए थे।

किस्से-कहानियों के बीच एक और समान्य बात यह थी कि चूहों एवं उनके बच्चों को फिंकवाते के वक्त औरतों को एक-एक बड़ा चूहा, उन्हें घूरते हुए भी दिखाई दिया था। परिणामस्वरूप यह चर्चित तथ्य था कि जिन चूहों के परिवार को नष्ट किया गया था, मोटा या बड़ा चूहा उन्हीं परिवार के सदस्यों में से एक था जो अपने परिवार-जनों को नष्ट होते देख, जहर देने वाले की पहचान रखता था। मजे की बात थी कि किसी भी काम वाली को जिसके द्वारा मरे चूहे फिंकवाये जाते थे उसे नहीं काटा गया था बल्कि घर की मालकिन को ही जो चूहों को दवा डालती या डलवाती थी उसे ही काटा गया था। हैरानी तो होती है सुन कर, एकाएक विश्वास भी नहीं होता है कि क्या ऐसा हो सकता है? लेकिन सच्चाई तो सच्चाई है। ऐसी घटनाओं को जिसने भोगा है वे तो बतायेंगे ही कि क्या हुआ है उनके साथ ! तो क्या इन चूहों की संवेदनशीलता, सूंघने की शक्ति एवं मुख्य आरोपी को पहचानने की विलक्षण शक्ति भी इनमें होती है? ये बात तो कोई विशेषज्ञ ही बता सकता है परन्तु अपने तथा अपनी सहेलियों के अनुभवों से तो मुझे लगता है कि शायद होती ही होगी ! तभी तो चुन-चुन कर चूहों ने सिर्फ उन्हीं औरतों के; उन्हीं हाथ की;अंगुलियों को अपनी दांतों काटा है जिसके द्वारा दवा या केक के टुकड़ों को जहाँ-तहाँ रखा गया था। यहाँ तक कि जिन्होंने अपने घर में मौजूद चूहों के घरौंदा को नष्ट कर, या करवा कर उसके मृत परिजनों को बाहर फिंकवाने का काम किया था उन्हें भी काटा था या काटने को झपटा जरूर था। इन किस्से-कहानियों के आधार पर यह मानना अनुचित नहीं होगा कि आक्रामक और उत्पाती चूहे नुकसान पहुँचाने इंसानों को पहचान कर उससे बदला भी लेते हैं।

ऐसे अपने देश के प्रवर्तक निदेशालय एवं सीबीआई की क्षमता भी चूहों की ही तरह विलक्षण है। विभिन्न स्थानों पर नेताओं, व्यापारियों, घोटालेबाजों, तस्करों आदि के अवैध रूप से विभिन्न प्रकार की जमाखोरी किये गए, छुपाये गए संपत्तियों वाले स्थानों पर छापामारी के किस्सों को अक्सर हम समाचारों के द्वारा प्राप्त करते हैं। फिलहाल सूँघने की विलक्षण शक्ति वाले एवं सुरँग बनाने वाले चूहों की कारस्तानियों की चर्चा किसी अन्य कहानी में प्रस्तुत की जाएगी।

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