The corrupt and characterless politicans of India

"दाग - धब्बे" - Characterless Politicians

बैठे-बैठे खयाल आया कि दाग और धब्बे में क्या अन्तर है।

वस्तुतः हम दाग और धब्बे तथा दाग-धब्बे शब्दों का प्रयोग क्यों करते हैं? सामान्यतया दोनों एक ही अर्थ वाले शब्द हैं, फिर भी हम इन दोनों शब्दों का कभी अलग-अलग तथा कभी युग्म शब्द के रूप को प्रयोग में लाते है। इनका प्रयोग सांकेतिक, रूपक, शैली, बिम्ब, प्रतिबिम्ब एवं प्रतीकों के लिए भी किया जाता है।

मिथिला के प्रसिद्ध लेखक "डॉ नागेंद्र" के अनुसार काव्य-बिम्ब, मूल-मानस छवि को निखारने के लिए कल्पना निर्मित मानस छवि है।"रॉबिन-स्केलटन"ने बिम्ब एवं प्रतीक को ऐनीन्द्रीयानुभूति को जागृत करने वाला बताया है। "एजरापाउंड"ने संकेत किया है कि बिम्ब क्षण मात्र में बौध्दिक एवं संवेगात्मक जटिलताओं तथा भाव ग्रंथियों को हमारे सामने प्रस्तुत कर देता है।

अब प्रश्न है कि क्यों मुझे आज इन शब्दों की आवश्यकता हो आयी है? वस्तुतः कुल-कलंक,दागी-चरित्र,दाग-धब्बे,काली-स्याही,दाल में काला या दाल ही काली कहने की इच्छा तभी होती है जब विभिन्न कारणों से मनुष्य स्वयँ को आहत, ठगा-हुआ, लुटा हुआ महसूस करता है।आज हिन्दू-समाज के ज्यादातर लोग एकमत न होने के कारण स्वयँ को सरकार द्वारा ठगा गया ही महसूस करता है।सत्तर साल के दोहन, झूठ, निरंकुश दमननीति के साथ-साथ जो सामाजिक, वैचारिक, कानूनी छल-छद्मों का बोल-बाला रहा है उससे हिन्दुओं की धार्मिक मान्यताओं, आस्थाओं और रीति-रिवाजों को भी धीमी गति से समूल नष्ट करने की कोशिश में काँग्रेसियों की, विदेशियों द्वारा संचालित सरकार लगी रही है।

मुस्लिम-प्रशासकों के कलंक को धोने के लिए इतिहास में हिन्दू-स्त्रियों, राजपूतों, जनजातियों, साधुओं की शौर्य गाथाओं की जगह मुगलों की शौर्य गाथा पढ़ाई जाती रही है, यहाँ तक कि राणाप्रताप, चेतक, झाँसी की रानी, पृथ्वीराज चौहान की गाथाएँ भी आधुनिक पाठ्यक्रमों में न के बराबर हैं। नागा साधुओं ने अंग्रेजों पर तलवारों से आक्रमण किया था और हजारों की संख्या ने मारे गए थे I भारतीय संस्कृति के रीढ़ को तोड़ने के लिए गुरुकुलों को बन्द कर,मदरसे तथा कॉन्वेंट की संख्याओं को बढ़ाया गया,जहाँ निरंतर हिन्दुओं का किसी न किसी भाँति धर्म परिवर्तन भी कराया गया।इस्लामी नेता देश का इस्लामीकरण करते रहे और काँग्रेसियों की सोनियाँ सरकार क्रिस्चियनिटी को सुविधायें प्रदान कर उसे सनातन धर्म से श्रेष्ठ समझाते हुए हिन्दुओं को क्रिश्चियन बनाती रही।

एक तरह से काँग्रेसियों के प्रशासन काल को भी हिन्दुओं के लिए अन्धयुग ही कह सकते हैं जहाँ पंजाबी, बंगाली, असमी हिन्दुओं, सिख्खों, कश्मीरी-पंडितों, कार- सेवकों, साधुओं, पुजारियों की हत्यायें होती रही हैं। कोंग्रेसियों के शासन काल में, कश्मीर में, सेना के जवान आतंकियों की गोली-बारी, देशद्रोही-पत्थरबाजों-द्वारा भी बेमौत मारे जाते रहे हैं। वहाँ फारुख अब्दुल्ला और मुफ़्ती के शासन काल में मूलवासिन्दे पण्डित लूटे गए, कत्ल किये गए, बेघर मजबूर शरणार्थी और भिखारी बनने के लिए मजबूर किये गए। आये दिनों देश के विभिन्न शहरों में बम-विस्फोट से सामान्य नागरिक मरते रहे हैं जिसमें आरोप-प्रत्यारोप के दौर में मिनिस्टर और पुलिसकर्मियों को तो बदला गया परन्तु जंगल-राज, भू-माफिया, दाऊद गैंग के कारनामें- कत्ल, बलात्कार, अपहरण, दंगा सामान्य सी खबरें बन कर रह गयी है।

जन-सम्पर्क-संसाधनों की कमी के कारण जनता को धोखे में रख कर, उसे सच्ची खबरों से, काँग्रेसियों द्वारा किये गए हिन्दू-विरोधी कारनामों से हिन्दुओं को भी वंचित रखा जाता रहा I निर्दोषों को मौत के सौगातें मिलती रही, नेता निजी संपत्ति अर्जित करने में लगे रहे।

आज भी मुस्लिमों द्वारा की गई हत्याएँ, बलात्कार, आगजनी, तोड़-फोड़ पर कांग्रेस और उनके नेता प्रायः चुप ही रहते हैं, वहीं हिन्दुओं को विभिन्न जातियों में बाँट, उनके आपसी या जमीन विवाद से जुड़े हुए झगड़ों को भी साम्प्रदायिक रंग देकर, दंगे-फ़साद करवा कर, किसी न किसी रूप में हिन्दुओं की हत्यायें कराई जाती हैं। कहीं-कहीं फर्जी हिन्दू नाम या दलितों का नाम रख कर मुस्लिम और क्रिश्चियन समुदाय के कट्टरपंथी शैतानी समुदाय विशेष के लोगों द्वारा हिन्दुओं के विरोध में ही जहर फैलाने का काम भी किया जाता है। हिन्दू नाम रख कर हिन्दू लड़कियों को लवजिहाद के तहत फँसाने का धंधा,धोखाधड़ी, धर्म-परिवर्तन, ब्लैकमेल, बलात्कार, हत्या, साधारण खबरें बन कर रह गई हैं।

नेहरू सरकार जहाँ भारत के लिए मुस्लिम-तुष्टीकरण प्रवृति के कारण एक धब्बा थे, वहीं इंदिरा अपनी निरंकुशता के कारण कलंक ही थी। वंशवाद की प्रवृत्तियों ने राजीव गाँधी को इटालियन की हाथ का खिलौना बना कर घोटाले का ऐसा इतिहास रचने पर मजबूर कर दिया कि उनके जाने के बाद भी लूट और घोटाले का सिलसिला जारी ही रहा।

अनुमान लगा सकते हैं कि आज भी जब काँग्रेसियों की सुप्रीमो के कारनामों को बेपर्द किया जाता है, हिन्दुओं के प्रति किये गए अन्याय-अराजकता के विरुद्ध आवाज उठाई जाती है तो माईनो के निर्देशन पर छटपटाहट के साथ-साथ कई न्यूज चैनल वालों को भी कभी प्रत्यक्ष तो कभी अप्रत्यक्ष रूप से प्रताड़ित किया जाता है।

खबर की स्याही धुंधली होने से पहले ही पुनः किसी बलात्कार की, लव-जिहाद के बाद जबरन धर्म परिवर्तन की, निकाह के बाद भी बेघर कर दिए जाने वाली, जान से मार दिए जाने वाली हिन्दू-लड़कियों, बच्चे-बच्चियों की ख़बरें सरेआम हो जाती है। ध्यान देने की बात है ! जहाँ हिन्दू डॉक्टरों, हेल्थकेयर वालों, औरतों, बूढ़ों, लड़कियों, साधुओं, पूजरियों की हत्या, बलात्कार, लूटने आदि की घटनाएं होती है, कांग्रेस और बामपंथी दोगले मुस्लिम नेता चुप्पी साधे तमाशा देखते रहते हैं। वहीं अगर कोई मुस्लिम बूढ़ा-इमाम या माता की लापरवाही से बच्चा अपने ही रोग से मर जाता है तो डॉ को पीट दिया जाता है। चोर, गुंडा, आतंकी, दंगाई, हत्यारा या बलात्कारी मारा जाता है तो एक विशेष समुदाय हंगामा मचाने लगता हैं।

कुछ काँग्रेसियों एवं बामपंथी नेताओं की मानसिकता इतनी बिकी हुई, काली गन्दी और इंसानियत रहित हो चुकी है कि साधु-संतों, पूजरियों की हत्यायें बच्चियों का बलात्कार हत्यायें, धर्म-परिवर्तित हिन्दू-स्त्रियों की हत्या या आत्मदाह इनके लिए "गिद्ध-राजनीति" चमकाने से ज्यादा कोई तातपर्य नहीं रखती है।

संविधान में सेक्युलरिज़्म, मुस्लिम पर्सनल लॉ के अलावे हिन्दू-विरोधी नियमों को जोड़ कर कोंग्रेसियों ने हिन्दुओं को, सनातन वैदिक धर्म को अपमानित और खत्म करने का जो जघन्य अपराध किया है, वह अक्षम्य है। बात-बात पर सेक्युलरिज़्म और संविधान की दुहाई देने वाले दोहरी मानसिकता वाले नेता, मुस्लिम, ईसाई लोग संविधान, सेक्युलरिज़्म, भाई-चारे एवं मानवाधिकार की आड़ में सिर्फ सेलेस्टलिज़्म का खेल खेलते आ रहे हैं जो देश को गृह-युद्ध की ओर धकेलने का घृणित कार्य भी कर रहे हैं। कुछ छद्म-हिन्दू-नामधारी दोगली प्रवृति वाले लुटेरे नेता, जो अपने पूर्वजों का सनातन-वैदिक धर्म छोड़ कर विदेशी धर्मों को अपना चुके हैं, वे भारत के दुश्मन-देशों की भाषा बोलना, घृणास्पद बयानबाज़ी करना ही अपना गौरव मानते हैं। ये भारत की धरती पर, भारतीय संस्कृति और भारत की राजनीति के दाग-धब्बे ही नहीं बल्कि पूर्ण अलकतरा से पुते काले कलंक तथा लोमड़-गिद्ध-भेड़िये के बीच की कोई घृणित प्रजाति ही हैं। क्रोमोजोम्स के मिक्सर से उतपन्न ऐसी खतरनाक प्रजाति के लोगों का मानसिक विश्लेषण किसी वैज्ञानिक के लिये अनुसंधान का विषय हो सकता है ! ...... ऐसे खिलाड़ी-गिद्ध-भेड़िये-लोमड़ प्रजातियों के नेता और जनता कौन-कौन, कहाँ-कहाँ हैं?...........ये सोचना भारत की राष्ट्रवादी जनता का काम है।

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