Flying in dreams

अटपटे अनोखे सपने

-डॉ सुमंगला झा।

मनुष्य के दिमाग का मुझे ज्यादा ज्ञान नहीं है, न ही खुद के दिमाग का; परन्तु इतना अवश्य पता है कि मनुष्य का स्वप्न सदैव से एक खोज का विषय रहा है या यूं कहिए कि स्वप्न एक ऐसा विज्ञान है जिसपर बहुतेरे पुस्तकें लिखीं गयीं है फिर भी यह विषय उतना ही कौतुहल भरा है जितना कि मनुष्य की कल्पना शक्ति। मनुष्य का स्वप्न उसकी वास्तविक या काल्पनिक दुनिया के कहीं तो बहुत करीब और कहीं बिलकुल परे होती हैं। कभी हम ऐसे स्वप्न भी देखते हैं जो लगभग अपनीं जीवन या जीवन शैली से जुड़ी लगती है परन्तु कभी कभार कुछ ऐसे भी स्वप्न होते हैं जिसका कोई सिर पैर नहीं। जाग्रत अवस्था में भले ही लोगों का दिमाग रोजमर्रा के विषय में उलझा हुआ या फिर ख्याली-पोलाव पका रहा हो लेकिन निन्द्रित होते ही ये सैर करने निकल जाते हैं। जिन स्थानों की जाग्रत अवस्था में हम कल्पना भी नहीं कर सकते, स्वप्न मेंउन्हीं जगहों पर हम सहजता से विचरण करने लगते हैं। ऐसे ही कुछ अनोखे तथा अटपटे सपनें लेकर हम आए हैं।

देखा जाए तो मेरी उम्र और वजन दोनों ही मानक स्तर से कुछज्यादा ही हैं अतः बदन की फुर्ती भी नाम मात्र की ही है परन्तु स्वप्न में उड़ानें हम बिना किसी सहारे ऐसे लगा लेते हैं कि हर उड़नें वाली जीवों या वस्तुओं को मात दे दें। लेकिन इसमें भी स्वप्न लोक का अपना एक अलग ही विज्ञान है। सपनें में मैं पहले भी कभी कभार उड़ती रही हूँ परन्तु मेरी वजन मेरी उड़ान के आड़े नहीं आती थी।परन्तु गत रात मैंने जो सपना देखा उसमें मेरे बढ़े वजन का मेरी उड़ान भरने की क्षमता पर असर पड़ता दीख रहा था।

बचपन और जवानी में पहले अपनी बाहों को चिड़ियों की पंख की तरह इस्तेमाल कर गगन में उतराया करते थे। कभी नदी के किनारे, उसके खतरनाक कछारों को निहारते जहाँ कछुए होते, कहीं बलुआई टिब्बों पर हेलीकॉप्टर सा चक्कर लगाते जहाँ धूप सेंकते घड़ियालों को देखते हैं, साथ ही यह भी सोचते कि ये मेरा क्या बिगाड़ेंगे ?मैं तो ऊपर हवा में हूँ Iअपनीं इक्षा शक्ति से अपनीं उड़ान की दिशा, गति, ऊँचाई… सब कुछ बदल सकती थी।

ये उड़ना, घूमना-फिरना,अज्ञात जगहों की सैर करना अब भी स्वप्न में जारी है। कुछ अन्तर है तो बस इतना कि अपने बढ़ते वजन का एहसास नींद में भी है।अब बाँहों को चिड़ियों के पंख की तरह फैलाकर उड़ने में कुछ दिक्कतें आ रहीं हैं। लेकिन स्वप्न ने इसका भी उपाय निकाल लिया है। अब पंखनुमा बाहों से उड़ान भरने में दिक्कत होने के कारण अपने आगे या नीचे एक चटाई भी चिपका लेती हूँ ताकि हवा में उतराने के लिये, छलांग लगाने में या हवा में ऊँचाई पर उड़ान-संतुलन बनाये रखने के लिए 'एरोडायनेमिक लिफ्ट' की कमी न हो। फिर अचानक ही किसी हरी-भरी विस्तृत मैदान या पठारों में पहुँच, हवा के झोंकों से असन्तुलित हो मेरा भारी वजन मुझे धरातल पर गिरा देता है और मैं दूर तक फुटबॉल सा लुढ़कती चली जाती हूँ और वो भी तब तक, जब तक कि पसीने में लथपथ हो खुद की ही चीख से नींद न टूट जाये।

सपनें में ही कोसती हूँ अपने बढ़े वजन को, कि उन्मुक्त उड़ान भी भरने नहीं देता। स्वप्न में ही सोचती हूँ कि हैरी पॉटर तो सिर्फ झाड़ू के डंडे पर उड़ान भर लेता है लेकिन सत्यानाश हो मेरे बढ़े वजन का कि मेरी चटाई भी उड़ान भरने में मेरा भार नहीं संभाल सकती। मैं उड़ान वैज्ञानिक नहीं हूँ तो क्या ? आखिर स्वप्न विज्ञान में इसका भी तोड़ तो होगा ही ! है न अजीब बात ! जो बातें जाग्रत अवस्था में असम्भव हैं वे स्वप्न में कितनी सहजता से सम्पन्न हो जाते हैं।

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