Dr Sumangala Jha, Chief Editor

सम्पादकीय : तर्पण

सम्पूर्ण भारत को एक सूत्र में बाँधने की सनातनियों द्वारा प्रायोगिक शैली अपने आप में अद्भुत और अनोखी है। हिन्दुओं के लिए विभिन्न शिवधाम, विष्णुधाम, गौरीमन्दिर के अलावे भी अनेक मंदिर में दर्शन की भावना जहाँ भावनात्मक रूप से परम्पराओं से हमें जोड़ती है वहीं मृत आत्माओं के तर्पण का भी महत्व कहीं कम नहीं है। सूर्यवँशी रामचन्द्र एवं भरतवंशियों की पुण्य भूमि में पूर्वजों के तर्पण के लिए लगभग बयालीस स्थान हैं,जहाँ पिण्डदान-तर्पण द्वारा हम अपने पूर्वजों की आत्मा की शान्ति, मुक्ति एवं उनके आशीर्वाद की कामना हेतु तर्पण करते हैं। ये तर्पण एवं पिण्डदान सम्पूर्ण भारत के प्रत्येक देवस्थान के साथ भी जुड़े हुए हैं। इनमें जो बहुत प्रसिद्ध हैं वे निम्नलिखित हैं। देवप्रयाग, सरस्वती कुंड, रुद्रप्रयाग, मदमहेश्वर, रुद्रनाथ(तुंगनाथ), ब्रम्हकपाल शिला,हर की पौड़ी, कुरुक्षेत्र(पेहेवा), पिण्डास्क, ध्रुवघाट(मथुरा), नैमिषारण्य, धौतपाप(हत्याहरण तीर्थ), ब्रह्मावर्त, प्रयागराज, मणिकर्णिका घाट, अयोध्या का सरयूतट, राजगृह, बोधगया, परशुराम कुण्ड, याजपुर, गुप्तकाशी, शिप्रातट(उज्जैन), गोदावरी तट(नासिक), महर्षि गौतम का स्थान त्रयंबकेश्वर, पंढरपुर(चन्द्र भागा), जग्गनाथ पुरी, लोहार्गल(राजस्थान), पुष्कर, तिरुपति, शिवकांची(हरिहरात्मक पुरी), कुम्भ कोणम(केरल), रामेश्वरम, दर्भशयनम, सिद्धपुर(गुजरात) नारायणसर, प्रभासपाटन(भालक तीर्थ जहाँ श्रीकृष्ण के पाँव में बाण लगा था), नरवदा तट, चाणोद, श्रीरंगम, रीवा आदि। शुक्लभाद्र पद के पन्द्रह दिन सम्पूर्ण भारतवर्ष में पितृपक्ष या श्राद्धपक्ष के रूप में देवात्माओं,ऋषियों तथा पूर्वजों के प्रति अपनी श्रद्धा की भावनाओं को व्यक्त करने के लिए पिण्डदान-तिल-जल अर्पित किया जाता है,जिसे संक्षेप में तर्पण कहा जाता है। प्रायः पूर्वज की मुक्ति एवं स्वयँ के पुण्यार्जन हेतु भारतीय नागरिक विभिन्न तीर्थों की यात्रा करते हैं।


इन स्थानों का वर्णन पौराणिक कथाओं से संपृक्त होने के कारण, ऐतिहासिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण हैं। इन्हीं तीर्थ स्थलों में मौजूद सत्य-तथ्यों के कारण हजारों साल बाद भी पौराणिक कथाओं की विश्वसनीयता एवं प्रमाणिकता सत्यापित होती है। ऋषि-मुनियों द्वारा की गयी पदयात्रा सम्पूर्ण भारत को संस्कृत भाषा, सांस्कृतिक परम्परा एवं ज्ञान के क्षेत्र में जन-जन को बाँधती आयी है। विभिन्न भाषाओं, रंग-रूपों, पहनावों, खान-पान के बावजूद आज भी अदृश्य एक-सूत्रता यदि भारतवर्ष में दिखाई देती है तो उसका श्रेय इस देश के ज्ञानी-पूर्वज, ऋषि-मुनियों को ही जाता है। यातायात के आभाव में वल्कल धारण कर, भौगोलिक दृष्टि से इन कठिन पथ पर पगयात्रा, एक क्षेत्र से दूसरे लोगों के साथ जोड़ने, ज्ञान-अनुभव बाँटने के उद्देश्य से ही जुड़ी रही है। वस्तुतः पौराणिक समय के ये ऋषि-मुनि (मोबाइल लाइब्रेरी) चलते-फिरते ज्ञान के भंडार थे जिन्होंने आर्यावर्त जैसे सम्पूर्ण क्षेत्र को एकसूत्र में पिरोने का सर्वाधिक सराहनीय कार्य भूतकाल से ही किया है।

पौराणिक काल का वैदिकज्ञान के साथ चलने वाला मनुष्य आज के संदर्भ में ज्यों-ज्यों स्वार्थ प्रवृत्ति के वशीभूत हो हिंसा और पाप की ओर बढ़ने लगा,उसका सांस्कृतिक पतन भी आरम्भ हो गया। आर्यावर्त की वैदिक संस्कृति विभिन्न मज़हब और रिलिजन के उदय के साथ सिकुड़ती चली गयी जिसका वर्णन अभी के लिए अप्रसांगिक है। आज भी विश्वशान्ति और उन्नति की कामना रखने वाला सनातन वैदिक धर्म चौतरफा आक्रमण को झेलते हुए आततायियों द्वारा प्रताड़ित हो रहा है। पूर्वजों द्वारा प्रदान किया गया महान आर्यावर्त भी छोटे-छोटे भूभाग में बँट चुका है। नव विकसित रिलिजन एवं मज़हब में दुष्कर्म जनित, साम्प्रदायिक तत्त्वों के आधिपत्य एवं हिंसात्मक व्यवहार ने धार्मिक तत्वों एवं कृत्यों की परिभाषा एवं व्याख्या भी बदल दी है।

आज के राजनीतिक हित-साधना संदर्भ के लिये की जा रही राहुलजी की राजकीय शानोशौकत वाली 'भारत जोड़ो पगयात्रा' उपहासात्मक प्रतीत हो रही है। आम नागरिक के टैक्स के पैसों के दुरुपयोग के साथ-साथ वैमनस्यता की भावनाओं को बढ़ाते हुए धर्म विशेष को प्रोत्साहन देने से जुड़े होने के कारण यह भारतीय संस्कृति एवं सनातनियों के प्रति भी अवहेलना, तिरस्कार एवं ओछेपन की भावना को ही प्रदर्शित करती है। पिछले वक्तव्यों एवं व्यव्हारों,के आधार पर तो राहुलजी प्रत्येक देश-विरोधी,अलगाव वादी, टुकड़े-टुकड़े गैंग,आतंकवादियों के समर्थक गैंग आदि के साथ ही जुड़े हुए दिखाई देते रहे हैं। दुश्मन देशों के साथ साठ-गाँठ, गुप्त मन्त्रणा आदि भी समाचार की सुर्खियों में छाए रहे हैं। इसलिए शायद ज्यों-ज्यों वे विभिन्न तीर्थ स्थानों से गुजरते हैं उनके करतब जादुई छाप छोड़ते हैं। कहीं चंदा न देने के कारण गरीब ठेलेवाला व्यापारी पीट दिया जाता है तो कहीं विवादित बयान देने वाला दोषपूर्ण आरोपी मौलवियों एवं पादरियों से 'ये' गुरुज्ञान प्राप्त करते हुए दिखाई देते हैं। अपने सुघर हास्यप्रेमी व्यक्तित्व के कारण ममता दीदी का 'खेलाहोबे' लहजे में मनोरंजक ढँग से गेंद फेंकते दिखाई देते हुए, समाज विशेष के लोगों को अपनी ओर आकर्षित करते दिखाई देते हैं।
जो भी हो अपने विशेष प्रतिभा के साथ अलबेले करतब करते हुए वे मुक्ति पथ पर निःसंदेह अग्रसर हैं।

पौराणिक भाषा में कहा जाए तो 'ये' महान नेता जहाँ-तहाँ, जब-तब कोंग्रेस के प्रसिद्ध नेताओं का पिण्डदान करते नजर आ रहे हैं या कोंग्रेस के नेता इनका पिण्डदान कर रहे हैं। कहीं कोंग्रेस हितैषी नेता मुक्ति प्राप्त कर लेते हैं तो कहीं मुक्ति के लिए छटपटाते नजर आते हैं।सनातन धर्म के अनुसार पिण्डदान और तिलांजलि देते हुए पूर्णश्रद्धा से श्राद्ध कर्म किया जाना ही फलप्रद होता है। उम्मीद है कि इस श्राद्धपक्ष में राहुलजी भी पूर्ण श्रद्धा से अपने पूर्वजों की कृतियों का लेखा-जोखा करते हुए, तथाकथित तीर्थों पर क्रमशः अपने दिग्गजों एवं वफादारों का पिण्डदान करते नजर आयेंगे। विभिन्न बुजुर्ग नेताओं को तिलांजलि देते हुए भारतभूमि से कोंग्रेस की मुक्ति की प्रार्थना कर, पूर्वजों के आशीर्वाद का पुण्य अर्जित कर, त्रस्त भारतीयों को भी त्राण प्रदान करेंगे। इस पुण्य कार्य में सताये गए सभी सनातनियों का आशीर्वाद भी उनके साथ बना रहे,ऐसी उम्मीद है। एवमस्तु !

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