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चलते चलाते : ये युद्ध

जीवन कितना क्षणभंगुर है,
यूक्रेन-रूस है बता रहा,
जो कल तक यहाँ चहकते थे,
है आज शहर निर्जीव बना।

जो घर में थे खुशहाली से,
हैं आज रिफ्यूजी बने हुए,
थी शानो शौकत बेमिसाल,
वे भी पैदल हैं कहीं चले।

तड़पें बच्चे,बूढ़े,औरत,
जब युद्धक्षेत्र हो देश बना,
लड़ते दिखते योद्धाओं की
बिखरी लाशें संदेश बना।

हे मानव! दैविक कृतियों का,
इस तरह न तुम विध्वंस करो,
निर्ममता से मानवता का,
इस तरह न तुम संहार करो।

होते अनाथ इन बच्चों पर,
इतना न अत्याचार करो,
परिवार छीन इन बच्चों का,
न बचपन को बर्बाद करो।

जब कभी युध्द होता जग में,
संहार सभ्यता का होता।
विकसित संस्कृतियों को पल में,
निर्मम इतिहास बना जाता।

।डॉ सुमंगला झा।

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