भागते भूत की लंगोटी: आजतक का अद्भुत ‘दंगल और हल्लाबोल’
अगर आपनें लोमड़ी को नजदीक से देखा या सुना नहीं है तो 'आजतक' टीवी चैनल पर दो कार्यक्रम अवश्य देखें : चित्रा त्रिपाठी का 'दंगल' और अंजना कश्यप का 'हल्लाबोल'। इन दो कार्यक्रमों में आपको दो तीन बातें बड़ी अच्छी तरह समझ में आ जाएँगी। एक तो लोमड़ी को लोग चालाक क्यों कहते हैं और दूजे विगत में “मुर्गा लडान” लड़ाई कैसे होती थी। आइये पहले लोमड़ी की चाल देखते हैं।
कहावत है लोमड़ी की चाल अजीबोगरीब होती है।जो दीखती है वो होती नहीं और जो होती है, दीखती नहीं। हालाँकि मुझे भी वतौर 'रक्षा विशेषज्ञ' इक्के-दुक्के इन कार्यक्रमों में सरीक होने का श्रेय मिला है लेकिन उसमें वो मजा नहीं जो बिना भाग लिए एक आम आदमी के तरह देखने में मिलता है। अभी हाल के दिनों में केजरीवाल सरकार के ‘आबकारी नीति' पर बहस अति दिलचस्प था। चित्रा त्रिपाठी ने सौरभ भारद्वाज से दिल्ली सरकार के नए शराब नीति के चलते बिक्री पर हुए 'Excise Duty' के नुक्सान पर सारे आँकड़े रखते हुए पूछा "क्या आप सरकार की नयी नीति से राजस्व का नुक्सान हुआ है ?" यहाँ से सौरभ भारद्वाज के कलाकारी की शुरुवात हुई। मुझ जैसे दर्शकों को यह समझनें में मुश्किल हो रही थी कि ज्यादा चतुर कौन ? जानवरों में लोमड़ी या मनुष्यों में आपके हमारे नेता सौरभ भारद्वाज ? लगभग ३ मिनट तक लगातार फर्राटे से बोलते रहे।
जो बोल रहे थे उसका चित्रा जी के सीधे से प्रश्न से कोई सरोकार नहीं था। चतुर नेता ने दर्शकों को विश्व का स्वरुप दिखाया, नभ की कल्पना; भारतीय राजनीति के दर्शन दिखाए और वस चलता तो इंद्र के सिंघासन का भी वर्णन कर जाते लेकिन चित्राजी ने बीच में ही टोक दिया "सौरभ जी ! आपनें मेरे प्रश्न का जवाब नहीं दिया जो एक शब्द ‘हाँ या ना’ में हो सकता था। मैनें आपसे सरल सवाल पूछा तो आपनें मुझे दर्शन शास्त्र पढ़ा दिया।आप मुझे सरल भाषा में बता दीजिए न कि दिल्ली सरकार को नुक्सान हुआ या नहीं ?"...और हमारे चतुर कलाकार फिर से शुरू हो गए। वे प्रधान मंत्री मोदी से नेहरूजी तक चले गए...भारत की भौगोलिक स्थिति बता डाली।अब वे देवलोक का वर्णन करने ही वाले थे कि चित्राजी ने फिर से टोक दिया।
हम जैसे दर्शक सम-सामयिक घटनाओं के एक सरल प्रश्न का उत्तर सुनने की अपेक्षा करते रहते हैं लेकिन भारतीय राजनीति के ये कलाकार आपके उत्तर के अलावे हमारे-आपके वक्त बर्बाद करते बकवास करते रहेंगे और चित्राजी जैसी एंकर विस्मित हो उसे देखती और सुनती रहेगी। यह सिर्फ आम आदमी पार्टी की बात नहीं है। ज्यादातर राजनैतिक पार्टियों का यही हाल है चाहे वो 'दंगल' हो या 'हल्लाबोल' । टीवी चॅनेल्स पर आने वाले कुछ ऐंचा-ताना की बात तो कुछ और ही निराली होती है चाहे कांग्रेस के खेड़ा जी हों या आप की आतिशी। ये लोग बोल कुछ रहे होते हैं, इनकी आँखें देख कहीं और होती हैं...और असहाय दर्शक समझ कुछ और रहे होते हैं। आजतक के 'दंगल और हल्लाबोल' जैसे कार्र्यक्रमों को जनता का नमन। धन्य हो ऐसे कलाकारों का ।
अब आइये हम "मुर्गा लडान" लड़ाई देखें। इस लड़ाई के एक सूत्रधार होते हैं...चित्रा या अंजनाजी जैसे ही एक चतुर एंकर; लड़ाई लगाने में पारंगत। लड़ाई की शुरुआत करने के लिए पूछ दिया "देश में महंगाई मोदीजी के ७.१ प्रतिशत मुद्रास्फीति में ज्यादा है या मनमोहन जी के समय के १२.७ प्रतिशत में"...बस महाभारत शुरू हो गया। मोदीजी के पांडव और सोनियाजी के कौरव तो आमने सामने थे ही, साथ-साथ शकुनी रूपी ममता की अलग ही सेनाएँ थीं। घमासान शुरू हो गया। बीच-बीच में सेनापति अगर सुस्त हो बगल काटने की कोशिश करते तो सुघड़ एंकर आखिर किस बात के ? वे पुनः उन्हें घमासान में जुटा देतीं और फिर से द्वन्द युद्ध शुरू हो जाता। किसी भी चुनाव के दौरान तो ऐसी "मुर्गा लडान" लड़ाई रोज देखने को मिल जाती है। आखिर हम भागते भूत की लंगोटी कब तक पकड़ने की कोशिष करते रहेंगे ?
कभी-कभी तो ऐसा प्रतीत होता है कि भारतीय राजनीति विश्व में अलौकिक है, मनोरंजन के वैश्विक पटल पर सबसे सशक्त ।ऐसे कार्यक्रमों में हमारे नेताओं या उनके प्रवक्ताओं की चातुर्य मुखरित होती रहती हैं। ऐसे मुकाबलों में अगर थोड़ी मिर्च मसाले डालने हों तो एक मजहबी को भी बिठा दीजिए। बस ! तब महाभारत ही नहीं वल्कि पानीपत की तीसरी लड़ाई से लेकर दिल्ली-मुजफ्फरनगर दंगे तक के कटुताओं को संसार के नवो रसों में व्याख्या सुन लीजिए। हमनें भारतीय सिनेमा के ललिता पवार जी के कलाकारी के विषय में सुना था कि कभी कभार सिनेमा हाल में जनता उनपर चप्पल जूते तक फेंक देते थे ।हमारे 'मुर्गा लड़ाई' में भी कुछ किरदार ऐसे प्रतीत होते हैं कि अनायास ही उनपर थप्पड़ जड़ने को जी चाहता है।उम्मीद है हम और हमारे टीवी चैनल्स इससे कुछ सीख लेंगे ।