U-turn of Nitish Kumar

नितीश ने ली पलटी मार, फिर से आया जंगलराज।

किसी के एक हाथ में तो किसी के दोनों हाथों में लड्डू होता है लेकिन बहुत कम लोगों को यह पता होगा कि कुछ लोगों के हाथों के अलावे आगे-पीछे, बाएँ-दाएँ भी लड्डू ही लड्डू होता है।हमारे पलटमार नितीश बाबू भी उन्हीं तकदीर वालों में से एक हैं। अबतक ये अधिकतर दूसरों के बल पर ही अपने कुछ विधायकों को चुनाव जिता पाए हैं जो अधिकांश बीजेपी या NDA की कृपा से थी और एक बार महागठबंधन का मुस्लिम-यादव फार्मूला। अपने आठ के आठ सरकार इन्होंने अल्पमत में रहकर दूसरी पार्टियों के रहमोकरम पर, उन्हें बैसाखी बनाकर चलाई है चाहे वह बीजेपी हो या फिर लालू का RJD । इनकी पार्टी को कभी भी बहुमत नहीं मिला।साल २००० में ये अपने ३४ MLA से ७ दिन के मुख्य मंत्री बने। फिर साल २००५ में ५५ MLA, २०१५ में ७१ MLA और साल २०२० में ४३ MLA के साथ मुख्य मंत्री बने। सिर्फ साल २०१० में इन्हें ११५ सीटें मिले थी जब ये बीजेपी के साथ मिलकर चुनाव लडे थे। फिर ये एक बार लालू की मेहरबानी से और दूसरी बार बीजेपी की मेहरबानी से पलटमार मुख्य मंत्री भी बने। अब पलटमार मुख्य मंत्री का तीसरा ‘शपथ ग्रहण २०२२’ है

नितीश बाबू की पलटीमार संज्ञा से महत्वपूर्ण है बिहार सरकार का नया मंत्रीमंडल। इस मंत्रीमंडल में अपराधियों की बहुतायत है। स्वयं उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव पर ११ केस दर्ज हैं। बिहार का नया क़ानून मंत्री कार्तिकेय कुमार पर पटना हाईकोर्ट ने वारंट जारी कर आत्मसमर्पण का आदेश दिया था । अब न्यायमंत्री बनाने के बाद वे सुनिश्चित करने वाले हैं कि बिहार का क़ानून जंगल राज से चलेगा। नीतिशबाबू के जदयू की एक महिला खाद्य उपभोक्ता संरक्षण मंत्री लेशी सिंह भी बाहुबली की संज्ञा से सुप्रतिष्ठित है। इस नए सरकार के शपथ के तुरंत बाद बिहार में जंगलराज कायम हो गया है। पटना में दिन दहाड़े कार का शो रूम लूट लिया गया। बिहार के एक पत्रकार की ह्त्या कर दी गयी और एक मंदिर के पुजारी का गला काट दिया गया। कोचिंग से आती हुई एक युवती को पटना में दिन दहाड़े गोली मार दी गयी और एक सैनिक की ह्त्या कर दी गयी। बिहार के लिए ये सब अत्यंत ही अशुभ लक्षण हैं, जंगलराज के सूचक हैं।

जयप्रकाश आंदोलन 1974 बिहार के उन्नति के तो किसी काम नहीं आया लेकिन उस आंदोलन में सामने आया 'लालू प्रसाद यादव'। १९८५ के चुनाव में ही उसनेअपने निर्वाचन क्षेत्र में मुसलिम-यादव का एक चुनावी समीकरण शुरू किया जो काफी प्रभावी रहा था। बाद में पीढ़ियों से उपेक्षित पिछड़ी जाति को भी अपनी मुस्लिम यादव समीकरण में शामिल कर लिया जो अच्छा कदम था।अब लालू का चुनावी जनाधार काफी बढ़ चुका था।पिछड़ी जाति को कानूनी रूप से सशक्त किया गया लेकिन उच्च वर्ग की अवहेलना होने लगी। बिहार में ब्राह्मण या राजपूत होना अभिशाप बनने लगा। बिहार में जातिगत वर्ग कटुता एक वास्तविकता थी जिसमें यादवों और मुसलामानों का दबदवा था। इनके पास अवैध बंदूकें थीं, लठैत थे और बाद में इन्होंने अगवा कर फिरौती वसूलने का धंधा भी शुरू कर दिया। यादवों का अत्याचार इतना बढ़ गया था कि तत्कालीन 'लल्लू राज्य' की कुव्यवस्था को दिखाने के लिए फिल्म निर्माता-निर्देशक प्रकाश झा को "गंगाजल" बनानी पडी थी। सवर्ण, अमीर और व्यापारी वर्ग डरे सहमें रहते थे।अब लल्लू भ्रष्टाचार में लिप्त, अपनीं मनमानी करता था।वह घोटालों पे घोटाले करने लगा औरआवाज़ निकालनें वालों के मुँह बंद कर देता। साशन व्यवस्था प्रजातंत्र से हटकर एकतंत्र हो गयी। तभी ‘चारा घोटाला’ सामने आया और बेचारे को 1997 में जेल जाना पड़ा। जेल तो चला गया परन्तु अपनी अंगूठा छाप पत्नी रबड़ी देवी को मुख्य मंत्री के कुर्सी पर आसीन कर गया। बिहार में जेल के सलाखों के पीछे से उसका दबदबा बरकरार थाऔर मुस्लिम-यादव-दलित ‘वोट बैंक’ की कृपा से यह दबदबा साल २००० के चुनाव तक बना रहा लेकिन बहुमत बहुत ही कमजोर था। नौबत यहाँ तक आ गयी थी कि नितीश कुमार ७ दिन के मुख्य मंत्री भी बने थे।लेकिन बहुमत सिद्ध न करने के कारण उन्हें स्तीफा देना पड़ा और रबड़ी देवी और लालू का जंगल राज पुनः शुरू हो गया।

साल २००५ में बीजेपी के साथ मिलकर नितीश बाबू ने सुसाशन और विकास लाया। फिर साल २०१४ का वह दौर आया जब नरेंद्र मोदी के प्रधान मंत्री बनने के बाद उन्होंने त्यागपत्र दे दिया। यहाँ से उनकी पलटमार राजनीति शुरू हुई और लालू के साथ बिहार में पुनः जंगलराज स्थापित किया। उन्होंने महा गठबंधन बनाया (जिसे लोग महा-ठग-बंधन भी कहते थे)और २०१५ का चुनाव RJD की बदौलत जीता। फिर उन्होंने साल २०१७ में पलटी मारी और रातों-रात RJD का साथ छोड़कर बीजेपी से नाता जोड़ा और अगले ही दिन पुनः मुख्यमंत्री की शपथ ली। लेकिन अबतक उनका सुसाशन का जादू फीका पड़ गया था।बड़ी मुश्किल से 2020 में बीजेपी के सहारे, मोदी मन्त्र की बदौलत ४७ सीटें जीत, हल्की बहुमत की सरकार बनायी।यह तो बीजेपी की भलमनसाहत थी कि इतने कम विधायक रहने के बावजूद भी उन्हें मुख्य मंत्री बनाया। यह नितीश कुमार, सुसाशन बाबू के परछाईं मात्र थे (पढ़ें "बिहार कहाँ था कहाँ है और कहाँ जा रहा है” https://articles.thecounterviews.com/articles/development-of-bihar/)।

अपने पिता लालू के गुणों से संपन्न तेजस्वी ने भी २०२० के चुनाव में रंग दिखाया।दो साल उपमुख्यमंत्री रह कर तो सिर्फ अपना जेब भरा, परन्तु चुनाव आते ही बिहारियों को सरकारी नौकरी देने की बात करने लगा।यह अंगूठा छाप नेता बिहार को महानता के सपनें दिखाने लगा।मुस्लिम यादव राजनीति पुनः शुरू की और २०२० चुनाव में कुछ सीटों की कमी मात्र से मुख्य मंत्री बनते-बनते रह गया।

हाल के कुछ महीनों से नितीश जी पर भी एक गतिशील और युवा चेहरा लाने के लिए दवाब बढ़ रहा था।विकास की गति धीमी रहने के कारण सहयोगी बीजेपी नाराज थे (पढ़ें “Bihar needs a young, clean and dynamic CM” https://articles.thecounterviews.com/articles/bihar-needs-young-clean-and-dynamic-cm/)।अब तेजस्वी ने मुख्यमंत्री नितीश के खेमें में खिचड़ी पकानी शुरू कर दी थी।नितीश जी ने पुनः पलटी मारी।उन्हें RJD के मुस्लिम-यादव सुर अच्छे लगने लगे।लालू कुनबे के साथ ईद मनाया और अब वह दिन भी आ गया जब RJD के साथ तालमेल बिठाकर, राज्यपाल को अपने सरकार का स्तीफा सौंप, रबड़ी देवी का आशीर्वाद लेने उसके दर्शन करने गया । अगले ही दिन वे आठवीं बार पलटी मार मुख्यमंत्री का शपथ ग्रहण किया

नीतीश जी की यह पलटीमार उनकी साख को बहुत चोट पहुँचाने वाली है और वह भी जब उनके पास सिर्फ ४७ विधायक हैं।लालू और तेजस्वी दोनों ही इस बात से वाकिफ हैं कि किस तरह कमजोर और निस्तेज नितीश बाबू की पूँछ मरोड़ी जाए, उसे बखूब पता है।यादव कुनबा बहुत हे चालाक हैं, किसी भी तरह अपना दाँव नहीं चूकेंगे । अब नीतीश जी के पास बीजेपी समर्थित बहुमत नहीं है। अगर चतुर लालू-तेजस्वी ने उन्हें दूध की मक्खी की तरह निकाल बाहर फेंका तो बीजेपी इस धोखेबाज नितीश को बचाने नहीं आएगी। राजनैतिक विशेषज्ञों का मानना है कि सम्प्रति पलटमार नितीश बाबू की दुर्दशा की संभावना अत्यधिक है। वे धीरे धीरे लालू कुनबे के आगे कमजोर पड़ते जाएंगे और वह भी समय आएगा जब अपने जीवन भर की कमाई साख को भी दाँव पर रख कर कुर्सी से चिपके रहेंगे। इसी विवशता से उनके प्रतिष्ठा का ह्रास होगा।

अबकी बार की जंगल राज से बिहार की भोली भाली जनता का त्रस्त होना लगभग तय है। उनहोंने तो राज्य के विकास के लिए NDA को बहुमत दिया था लेकिन नितीश कुमार ने उनका विश्वास फिर तोड़ा। लोमड़ कभी अपनी जात और चाल नहीं छोड़ता। गृह मंत्रालय नितीश जी के पास रहने के बावजूद राजद और लालू कुनबे ने उसका दुरूपयोग करना शुरू कर दिया है। जेल में रह रहे कैदी को पुलिस संरक्षण में घूमने फिरनें के आजादी मिल गयी है। गली सडकों में डर और भय का माहौल बनता जा रहा है। बिहार में क़ानून व्यवस्था दयनीय होती जा रही है।

जहाँ तक बीजेपी की बात है, पार्टी प्रमुख नड्डा, अमित शाह या फिर शीर्ष नेतृत्व मोदीजी को आत्म मंथन की आवश्यकता है। यह दूसरी बार हुआ है कि जिसके साथ मिलकर चुनाव लड़े उन्होंने पीठ में छुरी भोंकी।पहले महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे ने और फिर अभी बिहार में नितीश कुमार ने।यह चुनाव आयोग और उच्चतम न्यायालय के आगे भी एक संवैधानिक चुनौती है कि कैसे जनादेश का दुरूपयोग होता जा रहा है।अगर महाराष्ट्र में नरेंद्र मोदी के चेहरे और व्यक्तित्व को ध्यान में रखकर लोगों ने बीजेपी-शिवसेना गठबंधन को जनादेश दिया था तो इनमें से कम जनादेश वाली पार्टी एक कैसे विपक्षी पार्टी से मिलकर चुनाव-पूर्व मैत्री को एकतरफा दरकिनार कर प्रतिपक्ष के साथ हाथ मिलाकर सरकार बना सकती है।यह तो सरासर जनादेश का उल्लंघन है।ऐसे हर मामले में चुनाव आयोग को चाहिए कि पुनः जनादेश हासिल करने का आदेश दे। यह सरासर जनमत और जनादेश का उल्लंघन हुआ है, महाराष्ट्र में और बिहार में भी।

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