सम्पादकीय : "शान्त जल की लहरों के तले”
नदी किनारे बैठिए या समुद्र के शान्त जल स्तर के पास, उसकी सुंदरता को निहारना भला किसे अच्छा नहीं लगता है? इन शांत जल के नीचे विकसित जीवन, खनिजों, जल के बहाव, भूकंप या ज्वालामुखी से होने वाले भयानक परिणामों की ओर प्रायः हमारा ध्यान नहीं जाता है। अतीत के भयावह घटनाओं को भुला कर भविष्य की चिंताओं से मुक्त क्षणिक सुख-दुःख की अनुभूति में हम मनुष्यों का मग्न रहना हमारे संस्कार, संस्कृति, सोच, जीवन-शैली, शिक्षा तथा धार्मिक पोषण का भी योगदान होता है।
वैदिक मंत्रों का उच्चारण करने वाला जम्बूद्वीप पर भारत में प्राचीनतम सनातन वैदिक हिन्दू धर्म सभ्यता के साथ ही विकसित हुआ है और अपनी उदारता, गंभीरता विश्व-बंधुत्व की भावना के साथ सर्वव्यापी बना रहा है।
समयचक्र विकास के साथ विनाश भी लेकर आता है। परिवर्तन का संक्रमण कभी द्रुत तो कभी धीमी गति से सम्पूर्ण समाज को बदल देता है। शीर्षस्थ सत्ते पर आसीन सामाजिक व्यक्ति शांतिपूर्ण वातावरण को बनाये रखने के लिए निरंतर प्रयत्नशील रहता है जो उसके सत्तारूढ़ बने रहने के लिए आवश्यक होता है। जल के नीचे होने वाले हलचल को तब तक नजरअंदाज करना जब तक कि भूकंप, ज्वालामुखी या सुनामी न आ जाये; उसकी स्वार्थी प्रवृत्तियों के कारण ही होता है। संसार में परिवर्तन निरंतर होते रहे हैं और मानवीय सभ्यता ने कई धर्मों को अधिग्रहित किया है और कई को त्यागा है जिसमें वैदिक-संस्कृति, यहूदी, जोडोऑस्ट्रीयन, बौद्ध, जैन ईसाइयत,इस्लाम तथा सिख्ख धर्म भी आये और समयांतराल में फैले तथा फैलाये गए हैं। यूँ तो सभी धर्म अपने-आपको श्रेष्ठतम ही मानते हैं परन्तु मूलरूप से मनुष्य-मनुष्यता-संस्कृति-सभ्यता-प्रकृति की रक्षा को मानव ने अपना धर्म बनाया है। मन्तव्यों या विचारों को जबरन लादना, उसका पालन करवाना भी कुछ धार्मिक सम्प्रदायों ने अपनी विस्तारवादी नीति बनाया और उसे लागू करना आरंभ किया। तरीके अलग-अलग रहे। बौद्ध धर्म शान्ति और त्याग के संदेश के साथ विकसित हुआ, ईसाइयत का प्रचार अस्पताल की दवाईयों, शिक्षा तथा धूर्तता की राजनीति के साथ विकसित हुआ परन्तु इस्लाम अपनी बर्बरता, कट्टरता और क्रूरता के द्वारा लोगों पर लागू किया गया। शांतिपूर्ण ढँग से किसी उदारवादी देश में प्रवेश कर धीरे-धीरे वहाँ की मिट्टी पर अपना अधिकार जमाना पुनः एकाएक सामुहिक बलप्रयोग कर वहाँ की संस्कृति-सभ्यता तथा मनुष्यों को नष्ट करने की प्रवृत्ति, इस्लामिस्टों की युद्धशैली ही उनके मझहबी कृत्यों का पर्यायवाची धर्म और अल्लाह को खुश करने तरीका बन गया। इनकी यही युद्धशैली ने इनके मन्तव्यों को स्वीकार करने वाले लगभग संतावन देशों को जन्म दिया है, जहाँ इस्लाम फैला हुआ है। यह ऊपर से देखने में जितना शांतिपूर्ण है कृत्यों में उतना ही भयानक।
जिस किसी भी देश में इनकी संख्या बीस से तीस प्रतिशत के बीच है, वे देश सामुद्रिक जलतरंगों का आनंद लेते हुए कभी भी सुनामी, भूकंप या ज्वालामुखी के विस्फोटों को झेलने के लिए मजबूर हो सकते हैं क्योंकि लगभग संतावन देश इसी प्रकार से अपनी मूल संस्कृति से दूर हो कर विध्वंसक परिस्थितियों का सामना कर इस्लामिक राष्ट्रों में परिवर्तित हो चुके हैं। इन देशों में मनुष्यता, मानवाधिकार, उदारवादी विचारधारा, धार्मिक सहिष्णुता, धार्मिक-स्वतंत्रता, अल्पसंख्यक या स्वतंत्र-विचारों की अभिव्यक्ति, इस्लाम और इस्लामिस्टों के तलवार के नीचे हलाल हो दम तोड़ चुकी है। भारत में भी इसकी पैठ पिछले पच्छत्तर साल से कोंग्रेसियों के शासन काल में शान्त शीतल जल लहरों के नीचे असीमित मात्रा में विस्फोटक सामग्री के साथ इकट्ठे हो चुके हैं, जिसकी क्रूरता की खबरें शांतिपूर्ण वातावरण को बनाये रखने की विवशता के कारण सरकार द्वारा पूर्ण प्रकाशित भी नहीं होने दी जा रही है।
आज भी बहुत-सी अराजक कुकृत्यों की खबरों को नजरअंदाज किया जाता है ताकि शान्ति पूर्ण वातावरण बना रहे, परन्तु आज हमारे देश के कई राज्य ज्वालामुखी के ऊपर बैठ कर उपरी शीतल जल लहरों के आनंद ले रहे हैं, जो कभी भी जिंदगी को निगलने के लिए तैयार है। आवश्यक चेतनता, सुनियोजित कठोर निर्णय और कार्यवाही ही यहाँ इस देश एवँ देश के नागरिकों को सुरक्षित रख सकता है। भारत में यह शांत जल एक बड़े तूफ़ान के पहले का सूचक सा प्रतीत होता है।परमात्मा वैदिक संस्कृति की रक्षा करें।