Yashwant Sinha

अंतरात्मा की आवाज़

यशवंत जी का स्थान कोंग्रेसियों की पार्टी में चाहे जो भी रहा हो परन्तु कोंग्रेस के अध्यक्ष तो कभी बन ही नहीं सकते थे और न ही बन सकते हैं, वही क्यों ? माइनो परिवार के अलावा कोई भी कोंग्रेस पार्टी का अध्यक्ष नहीं बन सकता है। अगर किसी का ओहदा पार्टी में ऊँचा या पदस्थ होता है तो पार्टी के सदस्यों की चमचागिरी और भ्रष्टाचार द्वारा परिवार को फायदा पहुँचाने की विश्वसनीयता की क्षमता ही उसका पैमाना होती है। सभी जानते हैं कि नेहरू, इंदिरा, वरुण, राजीव, सोनियाँ, राहुल, वाड्रा सभी अपने-अपने समय में घोटालेबाजी और भ्रष्ट्राचार में लिप्त रह अरबपति बने हुए हैं। इस परिवार संपत्तियों का लेखा-जोखा या संपत्ति उपार्जन के तरीकों का पता पाना साधारण जनता के लिए असम्भव सा है।

यूँ तो कोंग्रेस के बहुत से नेता घोटालेबाज़ी में लिप्त होने के कारण प्रवर्तन अधिकारियों के निशाने पर हैं, पकड़े भी गए हैं, पूछ-ताछ के बाद जमानत पर बाहर घूम रहे हैं।लेकिन ज्यों ही सोनियाँ एवं राहुल को पूछ-ताछ के लिए प्रवर्तन निदेशालय के अधिकारियों द्वारा बुलवाया गया, भ्रष्टाचार में लिप्त परिवार के समर्थन में सारे भ्रष्टाचारी नेता सड़क पर धरणाप्रदर्शन के कार्य में तत्परता से लग गए हैं।

जमानत पर बाहर रह, सटीक आयोजन कर, एंटोनियो माइनो एवं राहुलसुर के चमचों ने दंगाई, देशविरोधी, धरणाजीवी एवं आगजनी करने वालेप्रदर्शन कारियों की भीड़ को इकट्ठा कर लिया है। सोनियाँ समर्थक पार्टी हंगामा मचाने और देश को जलाने के कार्य में तिलमिलाए हुए से लग गए हैं। कोंग्रेस अध्यक्षा एवं उनके चमचे जिन प्रवर्तन अधिकारियों और पुलिस कर्मियों के उपयोग भृष्टाचारियों तथा आतंकियों को बचाने के लिए तथा बेगुनाहों को फँसाने के लिए प्रयोग में लाया करते थे आज उन्हीं का प्रयोग स्वयँ के खिलाफ किया जाना उन्हें बर्दाश्त नहीं हो रहा है।

आज सेना, पुलिस, प्रवर्तन कार्यालय के अधिकारियों में से बहुतायत को देशव्यापी आतंकीतंत्र को बर्बाद करने तथा भृष्टाचारियों को पकड़ने के कार्य में लगाये जाने के कारण, उनका सुलगना तो सर्वथा न्यायिक ही है, सूर्पनखा, राहुलसुर, ताड़कासुर एवं ताड़िका के लिए भी चिन्ता का विषय है। स्वभावतः बार-बाला- सूर्पनखा सुंदरी, ममता-ताड़िका सुंदरी, जरासंध- खेजरूद्दीन के इशारे पर सभी मारीच, भष्मासुर, कंस, महिषासुर-कम्युनिस्ट आदि पूरी ताकत से उत्पात मचाने में लग गए हैं।

इसी दौरान राष्ट्रपति चुनाव की घोषणा; उनका नामांकन- प्रक्रिया ने राज्यसभा, लोकसभा एवं विधानसभा में हलचल पैदा कर दी है। राष्ट्रपति पद की उम्मीदवारी की घोषणा के साथ ही कुछ नेताओं के शर्मनाक बयानबाजी ने उनके मानसिक दिवालियापन के साथ कथनी और करनी के अंतर को भी प्रदर्शित कर दिया है। कोंग्रेसियों की हरकतों के कारण उनके महत्वाकांक्षाओं का उम्मीदवार महत्वाकांक्षी यशवंत जी की उम्मीदों पर पानी फिरना बहुत ही दुखद घटना है। उनसे सहानुभूति भी है, परन्तु यहाँ गर्वोक्ति से सुसज्जित व्यक्तित्व आज शिष्टाचार से परिपूर्ण कर्मयोगी से पराजित हुई प्रतीत होती है।

यशस्वी यशवंत जी ने ज्यों ही अपने नाम की उम्मीदवारी राष्ट्रपति पद के लिये जारी की उन्होंने अपने सारे संक्षिप्त घटिया वक्तव्यों को संचार साधनों से मिटा दिये। अचानक ही अत्यंत सभ्य सुसंस्कृत शिष्टमंडल के सदस्यों की भाँति उपदेशात्मक वक्तव्य जारी करने आरम्भ कर दिए। लेकिन घुटे हुए शातिरों ने भी उनके पुराने वकत्वों को जनता के साथ साझा कर, मजे लेने आरम्भ कर दिये हैं।

अपनी शिक्षा, लम्बे समय तक राजनीतिक संलिप्तता और सवर्ण होने का गर्व उनके सभी वक्तव्यों में स्वाभाविक रूप से प्रकट होता रहा है। दौपदी मुर्मू की तुलना में स्वयँ को श्रेष्ठ समझते हुए वे इस बात को भूल गए कि जिस पार्टी के साथ वे आजकल राजनीति में हैं; वे देश विरोधी, हिन्दू विरोधी, भष्टाचार, आगजनी, दंगा,धरणाप्रदर्शन जैसे अराजकता भरे कार्य में लिप्त भीड़तंत्र को बढ़ावा देने के कारण पूर्णतः बदनाम हो चुके हैं।

भारतीयों ने बदनाम सोनियाँ गेंडी, नेहरू परिवार के साथ-साथ उसकी फासिस्टवादी मानसिकता की प्रामाणिकता देखते हुए, उसे नकारना भी आरम्भ कर दिया है। बचे हुए सम्मान का बंटाढार लल्लू यादव के सुपुत्र ने मुर्मू जी को मूर्ति कह कर पूर्ण कर दिया। मूर्ति शब्द ने बिहार के जंगल राज की याद दिला दी जिसमें जनता को पाँचवी तक पढ़ी पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी के मुख्यमंत्री बनने की घटना याद हो आयी है। महामहिम मुर्मू के प्रति जितने भी विरोधी वक्त्व आये उसका परिणाम उल्टा ही हुआ, अन्त्योदय के आकांक्षियों ने तथा आदीवासियों द्वारा मिलने वाले वोट के लोभ ने राष्ट्रपति पद की जीत को अन्तिम परिणति तक पहुँचने की दिशा निश्चित कर दी।

जो भी हो! राजनीतिक उथल-पुथल के बीच यशवंत जी का एक वक्त्व बड़ी ही सच्चाई और ईमानदारी से कहा गया कि 'मैं सबों से निवेदन करता हूँ कि मतदाताओं को अपनी अंतरात्मा की आवाज़ सुन कर मताधिकार का प्रयोग करना चाहिए'। उनके मुँह से निकले यह वक्त्व प्रशंसनीय है।शायद बहुत से मतदाताओं ने अपनी अंतरात्मा की आवाज़ सुनी है, जिसके कारण 'महामहिम दौपदी मुर्मू' यशवंत सिन्हा की तुलना में लगभग तीन गुना ज्यादा वोटों से विजयी हो देश के सर्वोच्च पद, प्रथम नागरिक राष्ट्रपति की गरिमा को सुशोभित करने के लिये चुनी गई हैं। एक सवाल यूँ ही मन में उपजा है कि क्या यशवंत सिंह जी ने भी अपने मन की बात मान कर राष्ट्रपति मुर्मू जी को ही वोट दिया था?

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