wake-up India

सोचो समझो जागो


'फूट डालो राज करो' की नीति सिर्फ अंग्रेजों की ही नहीं, उनके नाजायज औलादों की भी है।ये कभी ब्राह्मणों को गालियाँ देते दिलवाते हैं, तो कभी राजपूतों को, कभी बनिये को, तो कभी वैश्य और शूद्र कोभी। कहीं-कहीं तो हिंदुओं के नाम का झूठा आई. डी. बना कर मुस्लिम विभिन्न हिन्दू सम्प्रदाय को गालियाँ देकर नए तरीके से अपने जिहादी मकसद को कामयाब करते हैं। दलितों को बाबा साहब के कथन "इस्लाम कभीहिन्दुओं तथा हिंदुस्तान को सगा मानने इजाजत नहीं देता है", को भी याद रखना चाहिए। सत्तर सालों के बाद भी पाकिस्तान या मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में सामाजिक न्याय के लिए तरसते दलितों, जिनकी बेटियाँ आये दिनों अगवा कर ली जाती हैं, याद रखना चाहिए।

इतिहास को देखा जाये तो ब्राह्मणों ने स्वयँ में सादगी, सद्गुणों के साथ भिक्षाटन द्वारा ही जीवन-यापन करते हुए विद्यादान तथा राजनीतिक सलाहकार का कार्य आदिकाल से किया है। व्यवसाय की कुशलता, जीवनयापन हेतु सभी वर्ग के लोगों को व्यवसाय बाँट दिया थापरन्तु पढ़ाई या ज्ञान अर्जित करने का अधिकार सभी जनों के लिए सुरक्षित था। सामाजिक कर्मकाण्डों में उच्च या निम्न जाति की प्राथमिकता परिस्थितियों के अनुसार निश्चित तथा पारस्परिक सद्भावना को विकसित करती थी जो पुरातन काल से अभी भी समाजमें मौजूद हैं। कुछ उदाहरण इस प्रकार से हैं- विवाह, उपनयन, मुंडनया श्राध्द पंडितों के साथ नाई तथा अन्य वर्ण भी अत्यंत महत्वपूर्ण माने जाते रहे हैं। किसी भी पूजा या कर्मकांड में जो बाँस की टोकड़ियाँ, सूप, डगरा आदि का उपयोग होता है, वह डोम ही बनाता है I मृगछाला चमारों द्वारा प्राप्त किया जाता था/ है, मिट्टी के बर्तन कुम्हार देता था, अभी भी देता है।

इसी तरह विभिन्न व्यवसाय के द्वारा उपार्जित धन से उनके परिवार कापालन-पोषण होता था। खुले मन से देखा जाए तो वैद्य,राजपूत, पुरोहित, पुजारी,धुनियाँ,बुनकर, ठठेरा,लोहार,महावत,साईस, काश्तकार,माली,दुषाध,लकड़हारा,कमार, गड़ेरिये,ग्वाले तथा विभिन्न जनजातियां भी प्रायः एक दूसरे से विभिन्न अवसरों त्योहारों तथा सामाजिक कर्मकाण्डों में महत्वपूर्ण रूप से जुड़े हुए रहे हैं। ये सभी अपने व्यवसाय में दक्ष थे।आज के व्यवसायिक शिक्षा के संदर्भ में कहा जाए तो उन्हें इस वर्ण-व्यवस्था के कारण व्यवसायिक-व्यापारिक सुरक्षा एवं एकाधिकार भी प्राप्त था। व्यवसाय में अतिक्रमण का खतरा नही था। रोजी-रोटी के लिए को मेहनत से किया गया काम छोटा या बड़ा नहीं होता है,ये भावना जो आज के प्रगतिशील विचारों के लोग बोलते हैं, उसे पहले कुशलता के साथ स्वेक्षा से किया जाता था।

राजमिस्त्री या वास्तुशास्त्र विशेषज्ञों की तुलना आज के आधुनिक युग के बड़े-बड़े आर्किटेक्ट को हैरान करने वाले,मंदिरों, बावरियों, क़िलाओं के रूप में भारत की आक्रांताओं के द्वारा क्रूरता से ध्वंस किये जाने के बावजूद धरती पर मौजूद हैं।

रामचरित मानस में निषादराज की मित्रता और शबरी के जूठे बेर तक खाने के उदाहरण मौजूद हैं,जिसके आधार पर कहा जा सकता है कि जाति प्रथा पहले नहीं थी। हिंदूओं की वर्ण व्यवस्था वस्तुतः अपने आप में व्यवसायिक कुशलता एवं ज्ञान की दृष्टि से अच्छी थी।

फिर छूत-अछूत, जातिगत ऊंच-नीच, भेद-भाव कब और कैसे आ गए, इसे समय की दृष्टि से निर्धारित करना कठिन है।सनातन धर्म को बदनाम करने का कार्य करने वालों को जानना चाहिए कि ब्राह्मणों ने अपने लिये हर प्रकार के ज्ञानार्जन, अनुसंधान, शिक्षाअर्जनतथा शिष्यों को ज्ञान प्रदान करने का कार्य ही अपने लिए रखा था, जबकि जीवनयापन भिक्षाटन से होता था।

पश्चिमी संस्कृति के साथ रंगभेद, ऊंच-नीच, भेद-भाव आयाजिसका ठीकरा हिन्दुओं की संस्कृति, खास कर ब्राह्मणों पर फोड़ा गया,जबकि यह घुसपैठिययों की देन है।अतिक्रमण करने वाले आक्रांताओं को जल्दी ही समझ में आ गया था, कि हिंदुस्तान की रीढ़ अगर तोड़नी है, उसे गुलाम बनाना है तो यहाँ की सामाजिक व्यवस्था, संस्कृति तथा ब्राह्मणों का खात्मा आवश्यक है। घुसपैठियों ने ब्राह्मणों के प्रति ही घृणा का बीज बोना आरम्भ किया, उनका समूहों में कत्ल भी किया। मजहबी या ईसाई घुसपैठियों के लिए सतर्क ज्ञानी ब्राह्मण ही बाधा थे। अन्य व्यवसाय के लोगों को लोभ देकर, प्रताड़ित कर अपने पक्ष में घुसपैठिये कर लेते थेपरन्तु ब्राह्मणों को उनकी कुटिल नीति, उनकी भविष्य की योजनाओं का ज्ञान हो जाता था। ब्राह्मण हिन्दुओं को स्वधर्म तथा राष्ट्रहित के लिए बिना किसी लोभ के जागृत करने के कार्य में लग जाते थे।

हिंदुओं को जबर्दस्ती कई तरह के अनैतिक कार्यों में उनकी संस्कृति को नीचा दिखाने के लिए उनकी पारंपरिक सभ्यता तथा अनुशाशित वर्णव्यवस्था के विरुद्ध अशांति फैलाने लिए धकेला गयाजिसके कारण वैमनस्यता बढ़ती गयी।स्वेच्छा, अनुशासन तथा आपसी तालमेल खत्म होने लगे, खत्म किये जाने लगे।अपने फायदों के लिए नागरिकों को प्रताड़ित, पुरस्कृत, ओहदेदार बनाने, उनका धर्म परिवर्तन करने-करवाने आदि का कुटिल कार्य इमामों और पादरियों द्वारा धूर्तता और क्रूरता के हथकंडों से आरम्भ हुआ और बढ़ता गया।

इस पुण्यभूमि पर जितने भी धर्म जन्मे और फैले, सभी शान्ति के लिए, शान्ति के उपासकों द्वारा प्रसारित हुए।आदि काल से प्रत्येक युग में जैन-समाज, बौद्ध-समाज, आर्य-समाज, ब्रह्म-समाज, लिंगायत-समाज भी हर व्यवसायी तथा स्त्रियों को शिक्षा प्राप्त करने, ज्ञान साझा करने का, समता का, अधिकार प्रदान करने, त्याग, सहनशीलता को प्रश्रय देने के आधार पर किया है। परन्तु नवविकसित रिलिजन और मझहब क्रूरता और धूर्तता का पाठ पढ़ाते रहे। इससे इंकार नहीं है कि सनातनियों में भी बुराइयाँ विकसित हुई हैं, परन्तु इसे दूर करने के लिए भी अनेकानेक व्यक्तित्व आगे आयेहैं ।महात्मा गाँधी के जन्म से हजारों वर्ष पूर्व भारतभूमि में विद्यमान अनेक महान व्यक्तित्वों ने समाज के उत्थान और विकास में वैदिक संस्कृति के संरक्षण के साथ कार्य करते हुए, समयांतराल में विकसित होने वाले जातिवाद को मिटाने का कार्य भी किया है। बारहवीं सदी के बश्वेश्वर का अमूल्य योगदान हैअतः अछूतों के उद्धार का श्रेय सिर्फ महात्मा गाँधी को देना अनेक विभूतियों का अपमान करने के समान होगा। मुस्लिम आक्रांताओं के 'लूट तथा इस्लाम थोपने की नीति', अंग्रेजों के 'फूट डालो राज करो' की नीतियों ने समाज में व्यवसायिक संप्रदायों को जातियों के बंधन को प्रोत्साहित करने का कार्य अपने फायदों के लिए किया। आजादी के बाद प्रगतिवादी विचारों के लोग जातिगत भेद को खत्म कर सामान्य संहिता लागू कर सकते थे परन्तु नेहरू की स्वार्थी कुटिल नीति, आरक्षण की व्यवस्थाओं ने इसे ज्यादा मजबूत बनाने का काम किया है। देश एवं देश के हिन्दुओं को असुरक्षित वातावरण में पहुंचाने, हिन्दुत्व के दुश्मन मुस्लिम घुसपैठियों को संरक्षण एवँ उन्हें मनमानी की छूट देने के तहत हिन्दुओं की हत्याओं और प्रताड़नाओं का श्रेय भी कोंग्रेस की कुटिल नीतियों की देन है। आज भी कोंग्रेस देशवासियों से ज्यादा देश के दुश्मनों की दोस्त बनी हुई है, जिसमें धर्मनिरपेक्षता की बीमारियों से ग्रसित वर्णसंकर नेता भी बेशर्मी से शामिल हैं। ब्राह्मणों को बदनाम करने की ,उन्हें दलितों द्वारा गालियाँ दिलवाने की, भीम-मीम का नारा लगाने वालों की चालें भी इनके 'येन केन प्रकारेण' द्वार सत्ता हासिल कर, लूट की प्रवृत्तियों को ही प्रदर्शित करती है।

आये दिनों नारा लगाने वाले कोंग्रेसियों, वामपंथियों और दलितों के नेताओं से एक सवाल मेरा भी है कि जब बंगाल, बिहार में दलितों के घरों को मुस्लिमों द्वारा जलाया गया है, मेवात में हिन्दू लड़कियों को जबरन उठाया जा रहा है, उनका जबरन धर्मपरिवर्तन कर मुस्लिम बुड्ढों से भी ब्याह कर दिया जा रहा है तो ये उपरोक्त उल्लेखनीय समूह चुप कैसे और क्यों हैं ? देश में जोश-खरोश के साथ झूठ फैलाने वाले समूह पंजाब, राजस्थान, टिकरी बॉर्डर, दिल्ली तथा अन्य मस्जिदों में आये दिनों जो युवतियों, बच्चियों काबलात्कार होता है, हत्यायें होती हैं, नाबालिगों का धर्म-परिवर्तन करवाया जाता है, उस समय चुप क्यों रहते हैं? चीन और पाकिस्तान तक के पक्ष में तथा देश को बदनाम करने वाले राहुल, प्रियंका, सोनियाँ या भीम-मीम के मुँह पर ताला क्यों लग जाता है? इन देशद्रोही साजिशों को हिन्दू नेता पहचान क्यों नहीं पा रहे हैं? क्या ये दोगले नेता कश्मीर और बंगाल के हालात पूरे देश में लाना चाहते हैं? नेहरू की कुटिल चाल ने उनके परिवारवाद तथा मुस्लिम संरक्षण को बढ़ावा दिया तो बाबाजी के आरक्षण नीति के संविधान ने भी ब्राह्मणों और सवर्णों को किनारा कर जातिवाद को दृढ़ कर हिन्दू समाज को तोड़ने का काम किया है।कुछ ऐसे भी व्यक्तित्व है को व्यक्तिगत फायदे के लिए हिंदुस्तान को खत्म करने की साजिश के तहत तानाशाह की तरह हिंन्दुओं के विरुद्ध कार्य करती गयी। इमरजेंसी लगाना, करोड़ों अविवाहित हिन्दुओं का बधिया करवाना, मुस्लिम लॉ, धर्मनिरपेक्षता, युद्ध की विभीषिका के बाद पाकिस्तान को जमीन लौटना, आत्मसमर्पण करने वाले पाकिस्तानी सिपाहियों को सुरक्षित वापस लौटाना,कैदी हिंदुस्तानी सिपाहियों को वापस नहीं लाना, आदि अनेक हरकतें हिन्दुओं को खत्म करने की इन्दिरा कोंग्रेसियों की चाल रही है, जिसे भोले हिन्दू अभी तक समझ ही नहीं पाए हैं। आज भी नेहरू-खान-माइनो की वंशवाद नीति के तहत कोंग्रेसियों के नेता गुलामों की तरह हिन्दुओं और हिंदुस्तान के दुश्मनों का साथ देते नहीं झिझकते हैं। इन लुटेरिन कोंग्रेसियों की माता के कुटिल चालों को बिकाऊ, लोभी या भोली जनता समाज समझ ही नहीं पाती है। यूँ तो नेताओंका भविष्य तो जनता के हाथ में होता हैपरन्तु कैसे बचेगी निहत्थी, बेबस, बेजुबान जनता, वह भी खूंखार गुण्डों, बंगाल की हत्यारिन, सैनिकों और लाखों कश्मीरियों की हत्या करवाने वाले, पाकिस्तान का राग अलापने वाली, या चीन से पैसे ले कर हिंदुस्तान के विरुद्ध बोलने वाले क्रूर,धूर्त रंगबदलू दोगले नेताओं से? ये गहन चिंतन कर,जमीनी स्तर पर प्रयोग में लाने का विषय है।

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